Thursday, April 11, 2019

हरिगीतिका छंद "माँ और उसका लाल"

ये दृश्य भीषण बाढ़ का है गाँव पूरा घिर गया।
भगदड़ मची चारों तरफ ही नीर प्लावित सब भया।।
माँ एक इस में घिर गयी है संग नन्हे लाल का।
वह कूद इस में है पड़ी रख आसरा जग पाल का।।

आकंठ डूबी बाढ़ में माँ माथ पर ले छाबड़ी।
है तेज धारा मात को पर क्या भला इससे पड़ी।।
वह पार विपदा को करे अति शीघ्र बस मन भाव ये।
सर्वस्व उसका लाल सर पर है सुरक्षित चाव ये।।

सन्तान से बढ़कर नहीं कुछ भी धरोहर मात की।
निज लाल के हित के लिये चिंता करे हर बात की।।
माँ जूझती, संकट अकेली लाख भी आये सहे।
मर मर जियें हँस के सदा पर लाल उसका खुश रहे।।

बाधा नहीं कोई मुसीबत पार करना ध्येय हो।
मन में उमंगें हो अगर हर कार्य करना श्रेय हो।।
हो चाह मन में राह मिलती पाँव नर आगे बढ़ा।
फिर कूद पड़ इस भव भँवर में भंग बढ़ने की चढ़ा।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21-09-18

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