बह्र:- 22 22 22 22
छाया देते पीपल हो क्या,
या दहशत के जंगल हो क्या।
जीवन का कोलाहल हो क्या,
थमे न जो वो दृग-जल हो क्या।
बजती जो पैसों की खातिर,
वैसी बेबस पायल हो क्या।
दुराग्रहों में अंधे हो कर,
सच्चाई से ओझल हो क्या।
दिखते तो हो, पर भीतर से,
मखमल जैसे कोमल हो क्या।
वक़्त चुनावों का जब आये,
हाल जो पूछे वो दल हो क्या।
गर हो माँ के आँचल से तो,
उसके जैसे शीतल हो क्या।
भूल गये बजरंग जिसे थे,
देश के बल तुम! वो बल हो क्या।
जाम-ओ-मीना हुस्न के जलवे,
'नमन' इन्हीं में पागल हो क्या।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-10-19
छाया देते पीपल हो क्या,
या दहशत के जंगल हो क्या।
जीवन का कोलाहल हो क्या,
थमे न जो वो दृग-जल हो क्या।
बजती जो पैसों की खातिर,
वैसी बेबस पायल हो क्या।
दुराग्रहों में अंधे हो कर,
सच्चाई से ओझल हो क्या।
दिखते तो हो, पर भीतर से,
मखमल जैसे कोमल हो क्या।
वक़्त चुनावों का जब आये,
हाल जो पूछे वो दल हो क्या।
गर हो माँ के आँचल से तो,
उसके जैसे शीतल हो क्या।
भूल गये बजरंग जिसे थे,
देश के बल तुम! वो बल हो क्या।
जाम-ओ-मीना हुस्न के जलवे,
'नमन' इन्हीं में पागल हो क्या।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-10-19
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