आभासी जग
खा मनन, चिंतन
करे मगन।
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खा मनन, चिंतन
करे मगन।
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शाख बिछुड़ा
फूल न जान पाया
गड़ा या जला।
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गलियाँ ढूंढ़े
बच्चों के गिल्ली डंडे-
बस्ते में ठंडे।
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प्रीत का गर्व
कुछेक खास पर्व
समेटे सर्व।
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कब की भोर
रे राही सुन शोर
निद्रा तो छोड़।
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ओखली, घड़े
विकास तले गड़े
गाँव सिकुड़े।
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आज ये देश
प्रतिभा क्यों समेट?
भागे विदेश।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
13-01-2019
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