बह्र:- 2122 1212 22
तेज़ कलमों की धार कौन करे,
दिल पे नग़मों से वार कौन करे।
जिनसे उम्मीद थी वो मोड़ें मुँह,
अब गरीबी से पार कौन करे।
जो मसीहा थे, वे ही अब डाकू,
उनके बिन लूटमार कौन करे।
आसमाँ ने समेटे सब रहबर,
अब हमें होशियार कौन करे।
पूछतीं कलियाँ भँवरे से तुझ को,
दिल का उम्मीदवार कौन करे।
आज खुदगर्ज़ी के जमाने में,
जाँ वतन पे निसार कौन करे।
आग नफ़रत की जो लगाते हैं,
उनको अब शर्मसार कौन करे।
*दाग़* पहले से ही भरें जिस में,
ऐसी सूरत को प्यार कौन करे।
आज ग़ज़लें 'नमन' हैं ऐसी जिन्हें,
शायरी में शुमार कौन करे।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
20-08-19
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