Tuesday, August 18, 2020

मुक्तक (इश्क़, दिल -2)

लग रहा है यार मेरा हमसफ़र होने को है,
सद्र जो दिल का था अब तक सद्र-ए-घर होने को है,
उनके आने से सँवर जाएगा उजड़ा आशियाँ,
घर बदर जो हो रहा था घर बसर होने को है।

हाय ये तेरा तसव्वुर मुझको जीने भी न दे,
ज़ीस्त का जो फट गया चोगा वो सीने भी न दे,
अब तो मयखानों में भी ये छोड़ता पीछा नहीं,
ग़म गलत के वास्ते दो घूँट पीने भी न दे।

(2122*3  212)
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बढ़ने दो प्यार की बात को,
औ' मचलने दो जज्बात को,
हो न पाये सहर अब कभी,
रोक लो आज की रात को।

(212*3)
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ओ नादाँ क्या हुआ था
बता क्या माज़रा था
क्या गहरा था समन्दर
तुझे दिल डूबना था।।

(1222 122)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
24-09-16

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