Wednesday, August 12, 2020

सार छंद "कुत्ता और इंसान"

सार छंद / ललितपद छंद

एक गली का कुत्ता यक दिन, कोठी में घुस आया।
इधर उधर भोजन को टोहा, कई देर भरमाया।।
तभी पिंजरा में विलायती, कुत्ता दिया दिखाई।
ज्यों देखा, उसके समीप आ, हमदर्दी जतलाई।।

हाय सखा क्या हालत कर दी, आदम के बच्चों ने।
बीच सलाखों दिया कैद कर, तुझको उन लुच्चों ने।।
स्वामिभक्त बन नर की सेवा, तन मन से हमने की।
अत्याचारों की सीमा पर, सदा पार इसने की।।

जिन पशुओं ने कदम कदम पर, इसका साथ दिया है।
पर इसने बेदर्दी दिखला, उनका कत्ल किया है।।
रंग बदलने में इसकी नहिं, जग में कोई सानी।
गिरगिट को भी करे पराजित, इसकी मधुरिम बानी।।

सत्ता पाकर जब ये मद में, गज-सम हो जाता है।
जग को भी अपने समक्ष तब, ये अति लघु पाता है।।
गेह बनाना इससे सीखें, दूजों की आहों पर।
अपने से अबलों को रौंदे, नित नव चालें रच कर।।

मृदु वचनों से मन ये जीते, पर मन में विष भारी।
ढोंग दिखावा कर के ही ये, बनता धर्माचारी।।
सर्वश्रेष्ठ संपूर्ण जगत में, भगवन इसे बनाये।
स्वार्थ लोभ में घिर परन्तु ये, जग में रुदन मचाये।।

मतलब के अंधे मानव ने, छोड़े कब अपने ही।
रच प्रपंच दिखलाता रहता, बस झूठे सपने ही।।
हम कुत्तों की फिर क्या गिनती, उसके आगे भाई।
जग में इस नर-पशु से बढ़कर, आज नहीं हरजाई।।

लिंक --> सार छंद / ललितपद छंद विधान

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21-4-16

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