Friday, August 7, 2020

ग़ज़ल (बुझी आग फिर से जलाने लगे हैं)

बह्र :- 122*4

बुझी आग फिर से जलाने लगे हैं,
वे फितरत पुरानी दिखाने लगे हैं।

गुलों से नवाजा सदा जिनको हम ने,
वे पत्थर से बदला चुकाने लगे हैं।

जबाब_उन की हिम्मत लगी जब से देने,
वे चूहों से हमको डराने लगे हैं।

दुनाली का बदला मिला तोप से जब,
तभी होश उनके ठिकाने लगे हैं।

मजा आ रहा देख कर उनको यारो,
जो खा मुँँह की अब तिलमिलाने लगे हैं।

मिली चोट ऐसी भुलाये न भूले,
हकी़क़त वे इसकी छिपाने लगे हैं।

'नमन' बाज़ आयें वे हरक़त से ओछी,
जो भारत पे आँखें गड़ाने लगे हैं।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
30-06-20

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