पंचिक
"विविध-3"
फलों की दुकान खोली नयी नयी सबरजीत,
गाने लगे लोग जल्द मधुर फलों के गीत।
पूछा मैंने, क्यों रे भाई,
फल तेरे ज्यों मिठाई,
झट बोला, 'सबर का फल मिले सदा स्वीट'।।
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दुखपुर में थी एक बाला खुशी नाम वाली,
आँसुओं से भरती थी जब कभी नेत्र-प्याली।
घरवाले घेर लेते,
उसको दिलासा देते,
'खुशी के हैं आँसू' बोल बोल बजा कर ताली।।
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मास भर पहले ही जो थे बने हुये दूल्हा,
फूंक मार मार बुझा रहे गैस का वे चूल्हा।
'अब तक तूने क्या भैंसे ही चराई',
सर पे सवार घरवाली गुर्राई,
उनके थे तब पाँव इनका सूजा कूल्हा।।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
20-12-2020
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