खुद पे रख यदि विश्वास चलो।
जग को जिस विध चाहो बदलो।।
निज पे अटल भरोसा जिसका।
यश गायन जग में हो उसका।।
मत राख जगत पे आस कभी।
फिर देख बनत हैं काम सभी।।
जग-आश्रय कब स्थायी रहता।
डिगता जब मन पीड़ा सहता।।
मन-चाह गगन के छोर छुए।
नहिं पूर्ण हृदय की आस हुए।।
मन कार्य करन में नाँहि लगे।
अरु कर्म-विरति के भाव जगे।।
हितकारक निज का संबल है।
पर-आश्रय नित ही दुर्बल है।।
मन में दृढ़ यदि संकल्प रहे।
सब वैभव सुख की धार बहे।।
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गिरिधारी छंद विधान -
"सनयास" अगर तू सूत्र रखे।
तब छंदस 'गिरिधारी' हरखे।।
"सनयास" = सगण, नगण, यगण, सगण।
112 111 122 112 = 12 वर्ण का वर्णिक छंद। चार चरण, दो दो समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
8-1-17
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