Wednesday, July 6, 2022

छंदा सागर (प्रस्तावना)

"छंदा सागर" ग्रन्थ

(प्रस्तावना)

हिन्दी छंदों का संसार अत्यंत विशाल है। हिन्दी को अनेकानेक वर्ण वृत्त संस्कृत साहित्य से विरासत में मिले हुये हैं। फिर भक्ति कालीन, रीतिकालीन और अर्वाचीन कवियों ने कल आधारित अनेक नये नये मात्रिक छंदों का निर्माण किया है। समय के साथ साथ ग़ज़ल शैली में उच्चारण के आधार पर वाचिक स्वरूप में छंदों में काव्य सृजन का प्रचलन बढ़ा है। इस प्रकार आज के काव्य सृजकों के पास छंदों की विविधता की कोई कमी नहीं है। आज हमारे पास वर्णिक, मात्रिक और वाचिक रूप में छंदों का विशाल अक्षय कोष है।

मस्तिष्क में एक स्वभाविक सा प्रश्न उठता है कि हिन्दी साहित्य में आखिर इन तीनों स्वरूप के कितने या लगभग कितने छंद होंगे। छंदों के प्रमाणिक ग्रंथ "छंद प्रभाकर" में भानु कवि ने कुल 800 के आसपास वर्णिक और मात्रिक छंदों का सोदाहरण वर्णन किया है। और एक मोटे अनुमान के अनुसार लगभग इतने ही छंद और हो सकते हैं
जिनका नाम और पूर्ण विधान उपलब्ध हो। इस संख्या की तुलना में छंदों की कुल संख्या का उत्तर शायद अधिकांश साहित्य सृजकों की परिकल्पना से बाहर का हो। छंदों के प्राचीन आचार्यों के पिंगल ग्रंथों में कुल छंदों की गणना के सूत्र दिये हुये हैं।

कोई भी वर्ण या तो लघु होगा या दीर्घ होगा। तो एक वर्णी इकाई के दो भेद या छंद-प्रस्तार हुये। इसी प्रकार दो वर्णी इकाई के इसके दुगुने चार होंगे क्योंकि लघु के पश्चात लघु या दीर्घ जुड़ कर 11 या 12 तथा दीर्घ के पश्चात लघु या दीर्घ जुड़ कर 21 या 22 कुल चार छंद-प्रस्तार होंगे। इसी विधान से त्रिवर्णी गण के चार के दुगुने कुल आठ प्रस्तार संभव है और ये आठ प्रस्तार हमारे गण हैं जिन पर समस्त छंदों का संसार टिका है। इसी अनुसार:-
4 वर्ण के 8*2 =16 प्रस्तार
5 वर्ण के 16*2 =32 प्रस्तार
6 वर्ण के 32*2 =64 प्रस्तार
7 वर्ण के 64*2 =128 प्रस्तार
26 वर्ण के छंदों की प्रस्तार के नियम के अनुसार कुल संख्या होगी 6,71,08,864 प्रस्तार

एक वर्णी से लेकर 26 वर्णी तक के छंदों का योग करें तो यह संख्या होगी -
6,71,08,864*2-2 = 13,42,17,726

26 वर्ण तक के छंद सामान्य छंद में आते हैं तथा इससे अधिक के दण्डक छंद कहलाते हैं जो 48 वर्णों तक के मिलते हैं। उनके प्रस्तार की संख्या को छोड़ दें तो ही ठीक है। यह सब वर्णिक छंदों के प्रस्तार हैं।

इसी प्रकार मात्रिक छंदों के प्रस्तार हैं, जिनकी गणना 1,2,3,5,8,13,21,34 के क्रम में बढती है। मात्रिक छंद 32 मात्रा तक के सामान्य की श्रेणी में आते हैं तथा इससे अधिक के दण्डक की श्रेणी में आते हैं। इस विधान के अनुसार 32 मात्रा के मात्रिक छंदों के प्रस्तार की कुल संख्या 35,24,578 है। एक से 32 मात्रा के मात्रिक छंदों का कुल योग करोड़ से भी अधिक आयेगा।

अब आप स्वयं देखलें कि कुल छंदों की संख्या क्या है, कितने छंदों का नामकरण हो चुका है और सभी छंदों का कभी भी नामकरण संभव है क्या।
इन प्रस्तार के नियमों का विश्लेषण करने से यह बात स्पष्ट रूप से सामने आ जाती है कि वर्णिक और मात्रिक छंदों में लघु दीर्घ वर्णों का जो भी क्रम संभव है वह अपने आप में छंद है। छंद कहलाने के लिये किसी विशेष वर्ण-क्रम का होना छंद शास्त्र में कहीं भी निर्दिष्ट नहीं है। लघु दीर्घ का कोई भी क्रम 1 से 26 तक की वर्ण संख्या में सामान्य वर्णिक और 1 से 32 तक की मात्रा संख्या में सामान्य मात्रिक छंद कहलाता है। 

अब ऐसा कोई भी क्रम जिसका नामकरण नहीं हुआ है, प्रचलन में नहीं आया है उसे कवि लोग नाम दे कर, यति आदि सुनिश्चित कर, उसमें रचनाएँ लिख कर प्रचलन में लाते हैं और वह यदि प्रचलित हो गया तो कालांतर में नया छंद बन जाता है।

प्रस्तुत ग्रंथ में सैंकड़ों मात्रिक व वर्णिक छंदों की गहराई में उतरते हुये उन छंदों की संरचना के आधार पर उस छंद का ऐसा नामकरण किया गया है कि उस नाम में ही उस छंद का पूरा विधान छिपा है। नाम के एक एक अक्षर का विश्लेषण करने से छंद का पूरा विधान स्पष्ट हो जाएगा।

उदाहरणार्थ विधाता छंद एक बहु प्रचलित और लोकप्रिय छंद है। गणों के अनुसार इसकी संरचना यगण, रगण, तगण, मगण, यगण तथा गुरु वर्ण है। 
'यरातामायगा' राखो विधाता छंद को पाओ।

गण विधान के अनुसार विधाता छंद का सूत्र 'यरातामायगा' है जिसमें छंद की संरचना आबद्ध है। इस पुस्तक में जो अवधारणा मैं प्रस्तुत करने जा रहा हूँ उसके अनुसार विधाता छंद का नाम होगा "यीचा" जिसमें छंद का पूरा विधान छिपा है। 
साथ ही यीचा से यह भी पता चलता है कि इसे वर्णिक, मात्रिक या वाचिक किसी भी स्वरूप में लिख सकते हैं।

हिन्दी भाषा के छंदों के विशाल भंडार को एक गुलदस्ते में सजाकर पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करना ही इस ग्रन्थ का उद्देश्य है। प्रस्तुत पुस्तक में छंदों के तीन वर्ग - वर्णिक, मात्रिक, वाचिक स्वरूप का संयोजन कर हर छंद की एक छंदा बना कर दी गयी है। इसीलिए इस ग्रन्थ का बहुत ही सार्थक नाम "छंदा-सागर" दिया गया है। छंदा एक परिभाषिक शब्द है जिसका अर्थ है किसी छंद विशेष के विधान का पूर्ण स्वरूप। छंदा से संबन्धित पाठ में इसकी विस्तृत विवेचना की गयी है। इस ग्रंथ की पाठ्य सामग्री विभिन्न पाठों में संकलित की गयी है।

किसी भी छंदा की संरचना के अनुसार नामकरण की प्रणाली हिन्दी के लिये बिल्कुल नयी है। जिसने भी कुछ प्रयास से इस पूरी प्रणाली को, अवधारणा को ठीक से समझ लिया है उसके सामने छंदा का नाम आते ही उस से संबन्धित छंद की संरचना का पूरा खाका आँखों के सामने छा जाएगा।

प्रारंभ में कुछ धैर्य की अपेक्षा है। पूरा विधान अपनी गण आधारित प्रणाली पर ही टिका हुआ है, इसलिये समझने में बहुत सरल है। बस थोड़े से धैर्य के साथ ग्रंथ को आद्यांत पढ़ने का है। छंद प्रेमी ग्रंथ से बिल्कुल भी निराश नहीं होंगे। उन्हें अनेकों नये नये मात्रिक व वर्णिक छंद प्राप्त होने वाले हैं। इस ग्रंथ में सैंकड़ों प्रचलित और ऐसे छंद मिलेंगे जिनका नामकरण हो चुका है और उससे कई गुणा अधिक ऐसे अनाम छंद मिलेंगे जिनकी संरचना का आधार प्रचलित छंदों की संरचना ही है। जिस भी छंद का नाम मेरे संज्ञान में आया है उस छंद का नाम उस की छंदा के नाम के साथ साथ कोष्ठक में दिया गया है।

इस बात का पूरा ध्यान रखा गया है कि छंदा का नाम छोटा सा तथा स्मरण रखने योग्य हो। छंदा का नाम संरचना के आधार पर है अतः यह सार्थक शब्द हो ऐसा संभव नहीं है। जैसे 'यरातामायगा' कोई सार्थक शब्द नहीं है वैसे ही अभी तो 'यीचा' भी कोई सार्थक शब्द नहीं है। परन्तु यीचा नाम अपने लघुरूप के कारण याद रखने में अत्यंत सुगम है।

मेरा यह प्रयास आज के रचनाकारों, समालोचकों और प्रबुद्ध पाठकों के लिये कुछ भी सहायक सिद्ध होता है, उनका चित्त रंजन करने वाला होता है, उन्हें कुछ नवीनता प्रदान करता है तो मैं इसे सार्थक समझूँगा।

जहाँ तक मुझसे संभव हो सका है छंदों के मान्य विधान को ही प्रस्तुत ग्रन्थ में दिया गया है फिर भी  कोई त्रुटि या मतांतर हो तो पाठकगण मुझे संबोधित करने का अनुग्रह करें।


बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
01-01-2020

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