कहाँ बचपन सुहाना छोड़ आया।
वो खुल हँसना हँसाना छोड़ आया।
नहीं कुछ फ़िक्र तब होती थी मन में।
कहाँ आलम पुराना छोड़ आया।।
(1222 1222 122)
*********
हमको ये मालूम नहीं है, किस्मत हमरी क्यों फूटी है,
जीवन जीने की आशाएँ, बचपन से ही क्यों टूटी है,
सड़कों पर कागज हम बीनें, हँस कर के तुम पढ़ते लिखते,
बसने से ही पहले दुनिया, किसने हमरी यूँ लूटी है।
(22×4//22×4)
***********
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
20-12-18
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-07-2022) को
ReplyDeleteचर्चा मंच "दुनिया में परिवार" (चर्चा अंक-4503) पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'