जिनको गले लगाया हमने, अक्सर गला दबाये वे।
जिनकी खुशियाँ लख हम पुलके, बारंबार रुलाये वे।
अच्छाई का सारा ठेका, हमने सर पर लाद लिया।
अपनी मक्कारी से लेकिन, बाज़ कभी ना आये वे।।
(लावणी छंद आधारित)
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इतनी क्यों बेरुखी दिखाओ तुम,
आँख से आँख तो मिलाओ तुम,
खुद की नज़रों से तो गिरा ही हूँ,,
अपनी नज़रों से मत गिराओ तुम।
(21221 212 22)
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मेरी उजड़ी ये दुनिया बसा कौन दे,
गुल महब्बत के इसमें खिला कौन दे,
तिश्नगी बढ़ रही सब समुंदर उधर,
बनके दरिया इसे अब बुझा कौन दे।
(212*4)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
25-07-22
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