सार छंद / ललितपद छंद
श्यामल अम्बर में सजधज के, लो रजनी भी आयी।
जगत स्वयंवर में जयमाला, तम की ये लहरायी।।
सन्ध्या ने अभिवादन करने, सुंदर थाल सजाया।
रक्तवर्ण परिधान पहन कर, मंगल स्वर बिखराया।।
सांध्य जलद भी हाथ बांधकर, खड़ा हुआ स्वागत को।
दबा रखा है अभिवादन की, वह अपनी चाहत को।।
सुंदर सन्ध्या का पाकर शुभ, गौरवपूर्ण निमन्त्रण।
प्राची से उतरी वह भू का, करने हेतु निरीक्षण।।
तारों भरी ओढ़ के चुनरी, मधुर यामिनी उतरी।
अंधकार की सैना ले कर, तेज भानु पर उभरी।।
प्यारा चंदा सजा रखा है, भाल तिलक में अपने।
विस्तृत नभ से आयी जग को, देने सुंदर सपने।।
निद्रा रानी के आँचल से, आच्छादित जग कर ली।
दिन भर की पीड़ा थकान की, सकल जीव से हर ली।।
निस्तब्धता घोर है छायी, रजनी का अब शासन।
जग समेट के कृष्ण वस्त्र में, निशा जमायी आसन।।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
17-04-2016
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