Saturday, September 3, 2022

गंग छंद "गंग धार"

गंग छंद

गंग की धारा।
सर्व अघ हारा।।
शिव शीश सोहे।
जगत जन मोहे।।

पावनी गंगा।
करे तन चंगा।।
नदी वरदानी।
सरित-पटरानी।।

तट पे बसे हैं।
तीरथ सजे हैं।।
हरिद्वार काशी।
सब पाप नाशी।।

ऋषिकेश शोभा।
हृदय की लोभा।।
भक्त गण आते।
भाग्य सरहाते।।

तीर पर आ के।
मस्तक झुका के।।
पितरगण  सेते।
जलांजलि देते।।

मंदाकिनी माँ।
अघनाशिनी माँ।।
भव की तु तारा।
'नमन' शत बारा।।
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गंग छंद विधान -

गंग छंद 9 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है जिसका अंत गुरु गुरु (SS) से होना आवश्यक है। यह आँक जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए। इन 9 मात्राओं का विन्यास पंचकल + दो गुरु वर्ण (SS) हैं। पंचकल की निम्न संभावनाएँ हैं :-

122
212
221
(2 को 11 में तोड़ सकते हैं, पर अंत सदैव दो गुरु (SS) से होना चाहिए।)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
25-05-22

5 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार 4 सितम्बर, 2022 को     "चमन में घुट रही साँसें"   (चर्चा अंक-4542)  (चर्चा अंक-4525)
       
    पर भी होगी।
    --
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  2. Replies
    1. आपका हृदयतल से धन्यवाद।

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  3. गंग छंद विधान,और साथ ही सुंदर ढंग छंद सृजन।
    मोहक।

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