चंडिका छंद / धरणी छंद
जिनसे जग लख, मैं बहूँ।
उन आँखों पर, क्या कहूँ।।
भव की इनसे, भव्यता।
प्राणी की सब, योग्यता।।
आँखें हैं तो, प्रीत है।
सब कामों में, जीत है।।
नयनों की कर, चाकरी।
रचता हूँ मैं, शायरी।।
नयन आपके, झील से।
कजरारे कुछ, नील से।।
मेरे मन पर, राजते।
डुबा डुबा कर, मारते।।
नीली आँखें, आपकी।
जड़ ये मन के, ताप की।।
हिरणी सी ये, चंचला।
करती मुझको, बावला।।
दो दो दीपक, नैन के।
जलते जो बिन, चैन के।।
कहें आपकी, भावना।
छिपी हृदय में, कामना।।
नयनों के जो, तीर से।
घायल इसकी, पीर से।।
इश्क सताया, पूत है।
रहता सर पर, भूत है।।
दो ही आँखें, हैं भली।
गोरी हो या, साँवली।।
दो से जब ये, चार हों।
चैन रैन के, पार हों।।
ऊपर के इन, नैन का।
नहीं भरोसा, बैन का।।
मन की आँखें, खोल के।
देखें जग को, तोल के।।
आँखो की जो, रोशनी।
जीवन की वह, चाँदनी।।
सृष्टि इन्हीं से, भासती।
'नमन' उतारे, आरती।।
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चंडिका छंद / धरणी छंद विधान -
चंडिका छंद जो कि धरणी छंद के नाम से भी जाना जाता है, 13 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है जिसका अंत रगण (S1S) से होना आवश्यक है। इसमें प्रथम 8 मात्रा पर यति अनिवार्य है। यह भागवत जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 पद होते हैं और छंद के दो दो या चारों पद सम तुकांत होने चाहिए। इन 13 मात्राओं का विन्यास अठकल, रगण (S1S) है। यह विन्यास दोहा छंद के विषम चरण वाला ही है।
अंतर केवल अठकल के बाद यति का है तथा अंतिम 5 मात्रा गुरु, लघु, गुरु वर्ण के रूप में हो।
अठकल = 4 4 या 3 3 2
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
31-05-22
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