तुम मेरी पाक़ मुहब्बत का ये दरिया देखो,
झाँक आँखों में मेरी इस को उमड़ता देखो,
गर नहीं फिर भी यकीं चीर लो सीना मेरा,
दिले नादाँ पे असर कितना तुम्हारा देखो।
(2122 1122 1122 22)
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कभी भी जब मुझे उनका ख़याल आता है,
तो गोते यादों में गुज़रा जो साल खाता है।
नज़र झुका के तुरत पहलू में सिमट जाना,
नयन पटल पे वो सारा ही काल छाता है।
(1212 1122 1212 22)
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साथ सजन तो चाँद सुहाना लगता है,
दूर पिया तो वो भी जलता लगता है,
उस में लख पिय की परछाई पूछ रहे,
चाँद बता तू कौन हमारा लगता है।
मुक्तक 2*11
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
25-07-22
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