Tuesday, January 10, 2023

छंदा सागर (कल विवेचना)

                       पाठ - 06

छंदा सागर ग्रन्थ


"कल विवेचना"


कला शब्द मात्रा का पर्यायवाची है जिससे कल शब्द की व्युत्पत्ति हुई है। कल विवेचना अर्थात मात्राओं की विवेचना। हिंदी के मात्रिक छंद गणों और वर्ण की संख्याओं से मुक्त होते हैं परन्तु उनमें मात्राओं का अनुशासन रहता है और यह अनुशासन कलों पर आधारित रहता है। मात्रिक छंदों के विस्तृत संसार में प्रवेश करने के पूर्व कलों की पूर्ण समीक्षा आवश्यक है। प्रस्तुत पाठ में हम विभिन्न कलों की संरचना, उनके नियम और उनके नामकरण के विषय में विस्तार से जानकारी प्राप्त करेंगे। 

स्थूल रूप से समस्त कलों के दो विभाग हैं। इसके बाद मात्रा की संख्या के आधार पर उन दो विभागों में कई कल हैं। जिनमें मात्राओं की संख्या दो से विभाजित हो सकती हैं वे समकल कहलाते हैं जैसे द्विकल, चौकल, छक्कल, अठकल आदि। जिनमें मात्रा की संख्या दो से विभाजित न हो वे विषमकल कहलाते हैं जैसे त्रिकल, पंचकल, सतकल आदि।

कलों के संकेतक:- किसी भी छंद की छंदा के निर्माण में संकेतक अत्यंत महत्वपूर्ण हैं अतः सर्वप्रथम हम विभिन्न कलों के संकेतक सुनिश्चित करते हैं। समकल अर्थात दो से विभाजित संख्या की मात्राएँ। इनके लिए हमारे पास पहले से ही संकेतक हैं।
2 मात्रा (द्विकल) गुरु वर्ण, संकेत ग या गा
22 = 4 मात्रा (चौकल) ईगागा वर्ण, संकेत गि या गी
222 = 6 मात्रा (छक्कल) मगण, संकेत म या मा
2222 = 8 मात्रा (अठकल) ईमग गणक, संकेत मि या मी।

समकल का प्रयोग मात्रिक, वर्णिक और वाचिक तीनों स्वरूप की छंदाओं में होता है परन्तु प्रयोग में विभिन्नता है। मात्रिक छंदाओं में इनका प्रयोग कल आधारित नियमों के अनुसार होता है जिसकी विवेचना हम इसी पाठ में पुनः करेंगे। वर्णिक छंदाओं में 2 सदैव दीर्घ वर्ण ही रहता है। वाचिक छंदाओं में 2 को दीर्घ वर्ण के रूप में भी रखा जा सकता है तथा शास्वत दीर्घ (एक शब्द में साथ साथ आये दो लघु) के रूप में भी रखा जा सकता है। गुरु छंदाएँ जिनमें केवल गुरु यानी 2 का प्रयोग होता है, उनके वाचिक स्वरूप में 2 को दो स्वतंत्र लघु में भी तोड़ सकते हैं यानी दो शब्दों में साथ साथ आये दो लघु।

विषमकल के लिए हमारे पास कोई पूर्वनिर्धारित वर्ण या गुच्छक नहीं है। इसका कारण यह है कि समकल में केवल 2 यानी गुरु वर्ण का प्रयोग होता है अतः इनका रूप ध्रुव है। जबकि विषमकल में 1 = लघु और 2 = गुरु, दोनों वर्ण का प्रयोग होता है। समकल की तरह इनका रूप ध्रुव नहीं है। इनके लिए विशेष संकेतक हैं, जिनसे हम चतुर्थ पाठ में परिचित हो चुके है। विषमकल निम्न हैं जिनका प्रयोग केवल मात्रिक स्वरूप की छंदाओं में होता है।

त्रिकल = 3 मात्रा, संकेत 'बु' या 'बू'
पंचकल = 5 मात्रा, संकेत 'पु' या 'पू'
सतकल = 7 मात्रा, संकेत 'डु' या 'डू'
नवकल = 9 मात्रा, संकेत 'वु' या 'वू'

इस प्रकार चार समकल और चार ही विषमकल हैं। अब हम एक एक कल की पूर्ण विवेचना करने जा रहे हैं। यह कल विवेचना मात्रिक छंदों को आधार बना कर की गई है।

समकल:-

द्विकल = 2 - द्विकल के दो रूप हैं - एक शब्द में साथ साथ आये दो लघु 'शास्वत दीर्घ' और दीर्घ यानी 2 । जैसे - तुम, वह, मैं, है, जो आदि। इसके लिये हमारे पास गुरु वर्ण है जिसके संकेतक 'ग' तथा 'गा' हैं। द्विकल के लिये छंदाओं मे उच्चारण की सुविधानुसार दोनों संकेतक का प्रयोग होता है।

चौकल = 4 - चौकल में चारों रूप (11 11, 11 2, 2 11, 22) मान्य रहते हैं। चौकल के नियम निम्न प्रकार से हैं जिनको सदैव याद रखना चाहिए क्योंकि इसका प्रयोग बहुतायत से होता है।
(1) चौकल में पूरित जगण (121) शब्द, जैसे विचार महान उपाय आदि नहीं आ सकते। 
(2) चौकल की प्रथम मात्रा पर कभी भी शब्द समाप्त नहीं हो सकता। 
चौकल में 3+1 मान्य है परन्तु 1+3 मान्य नहीं है। जैसे 'व्यर्थ न' 'डरो न' आदि मान्य हैं। 'डरो न' पर ध्यान चाहूँगा 121 होते हुए भी मान्य है क्योंकि यह पूरित जगण नहीं है। डरो और न दो अलग अलग शब्द हैं। वहीं चौकल में 'न डरो' मान्य नहीं है क्योंकि न शब्द चौकल की  प्रथम मात्रा पर समाप्त हो रहा है।
3+1 रूप खंडित-चौकल कहलाता है जो पद के आदि या मध्य में तो मान्य है पर अंत में मान्य नहीं है। 'डरे न कोई' से पद का अंत हो सकता है 'कोई डरे न' से नहीं। चौकल के लिये हमारे पास ईगागा वर्ण है जिसके संकेतक 'गि' तथा 'गी' हैं।

छक्कल = 6 - छक्कल में भी 1 से चार मात्रा में पूरित जगण नहीं होना चाहिए तथा प्रथम और पंचम मात्रा पर शब्द भी समाप्त नहीं होना चाहिए। केवल छक्कल आधारित सृजन में पूरित जगण अंत में आ सकता है। जिन छंदाओं के अंत में छक्कल पड़ता है उनमें यह
2+4 या 4+2 इन दो ही रूप में रहता है। 12+12 या 21+12 दोनों खंडित चौकल + 2 का ही रूप है।
"असफलता में धीर रहो।
धीरज खो कर विकल न हो।" ऐसे पद मान्य हैं। छंदा के आदि या मध्य में छक्कल का 3+3 रूप भी मान्य है जिसमें 12+21 या 21+21 रूप आ सकता है। छक्कल के लिये हमारे पास मगण है जिसके संकेतक 'म' तथा 'मा' हैं।

अठकल = 8 - अठकल के दो रूप हैं। प्रथम 4+4 अर्थात दो चौकल। दूसरा 3+3+2 है जिसमें त्रिकल के तीनों (111, 12 और 21) तथा द्विकल के दोनों रूप (11 और 2) मान्य हैं। अठकल के नियम निम्न प्रकार से हैं जिनमें दक्षता होनी अत्यंत आवश्यक है। चौकल और अठकल अधिकांश मात्रिक छंदाओं के आधार हैं।
(1) अठकल की 1 से 4 मात्रा पर और 5 से 8 मात्रा पर पूरित जगण - 'उपाय' 'सदैव 'प्रकार'' जैसा शब्द नहीं आ सकता।
(2) अठकल की प्रथम और पंचम मात्रा पर शब्द कभी भी समाप्त नहीं हो सकता। 'राम नाम जप' सही है जबकि 'जप राम नाम' गलत है क्योंकि राम शब्द पंचम मात्रा पर समाप्त हो रहा है।   
(3) अठकल का अंत सदैव (2 या 11) से होना चाहिए। 
पूरित जगण अठकल की तीसरी या चौथी मात्रा से ही प्रारंभ हो सकता है क्योंकि 1 और 5 से वर्जित है तथा दूसरी मात्रा से प्रारंभ होने का प्रश्न ही नहीं है, कारण कि प्रथम मात्रा पर शब्द समाप्त नहीं हो सकता।  'तुम सदैव बढ़' में जगण तीसरी मात्रा से प्रारंभ हो कर 'तुम स' और 'दैव' ये दो त्रिकल तथा 'बढ़' द्विकल बना रहा है।
'राम सहाय न' में जगण चौथी मात्रा से प्रारंभ हो कर 'राम स' और 'हाय न' के रूप में दो खंडित चौकल बना रहा है।

एक उदाहरणार्थ रची चौपाई में ये नियम देखें-
"तुम गरीब से रखे न नाता।
बने उदार न हुये न दाता।।"

"तुम गरीब से" अठकल तथा तीसरी मात्रा से जगण प्रारंभ।
"रखे न" खंडित चौकल "नाता" चौकल। "नाता रखे न" लिखना गलत है क्योंकि खंडित चौकल पद के अंत में नहीं आ सकता।
"बने उदार न" अठकल तथा चौथी मात्रा से जगण प्रारंभ।
अठकल के संकेत ईमग गणक (2222) के 'मि' तथा 'मी' हैं।

समकल संयोजन:- मात्रिक छंदाओं में प्रयुक्त विभिन्न समकल आधारित मात्राओं की संभावनाएं देखें।
10 मात्रिक = मीगण - 8+2; 4+4+2
12 मात्रिक = मीगिण - 8+4; 4+8; 4+4+4
14 मात्रिक = मीमण - 8+6; 4+8+2; 4+4+6
16 मात्रिक = मीदण - 8+8; 8+4+4; 4+8+4; 4+4+4+4; 
मीगण आदि छंदाओं के अंत का ण या णा इनका मात्रिक स्वरूप बता रहा है।
(16 मात्रिक को मीदण ही लिखा जायेगा पर यह रचनाकार पर निर्भर है कि वह इन 16 मात्राओं की ऊपर लिखी 4 संभावनाओं में से कौन सी प्रयोग में लाता है। इस संदर्भ में मीबे का अर्थ 14 मात्रिक है, जिसकी अंतिम छह मात्राएँ तीन दीर्घ वर्ण के रूप में हैं। )
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विषम कल:-

त्रिकल = 3 - त्रिकल के दो रूप हैं। 12 जैसे - नया, कभी, कमल, सुलभ आदि तथा 21 जैसे - राम, अश्व, दैन्य आदि। इसका संकेतक बु या बू है।

पंचकल = 5 - पंचकल त्रिकल और द्विकल का सम्मिलित रूप है जिसके दो रूप बनते हैं। 3+2 या 2+3। इनमें त्रिकल द्विकल की समस्त संभावनाएँ आ सकती हैं। इस प्रकार पंचकल की निम्न तीन संभावनाएं हैं-
122
212
221
इसके अतिरिक्त पंचकल को 4+1 और 1+4 में भी तोड़ा जा सकता है। पंचकल पु या पू संकेतक से दर्शाया जाता है।

सतकल = 7 - सतकल का निम्न लिखित रूप में से कोई भी रूप लिया जा सकता है।
6+1 या 1+6
5+2 या 2+5
4+3 या 3+4
सतकल की निम्न चार संभावनाएं बनती हैं।
1222
2122
2212
2221
सतकल को डु या डू संकेतक से दर्शाया जाता है।

नवकल = 9 - नवकल की निम्न पांच संभावनाएं हैं।
12222
21222
22122
22212
22221
इन पांच संभावनाओं को हम निम्न प्रकार से तोड़ सकते हैं।
8+1 या 1+8
7+2 या 2+7
6+3 या 3+6
5+4 या 4+5
नवकल को वु या वू संकेतक से दर्शाया जाता है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

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