Tuesday, January 17, 2023

ग़ज़ल (जो सब से बराबर खुशी बाँटता है)

बह्र:- 122 122 122 122

जो सब से बराबर खुशी बाँटता है,
डरा उससे हर दूर ग़म भागता है।

उठाले ए इंसान हस्ती को इतनी,
मिले तुझको वो सब जो तू सोचता है।

सनम याद में तेरी तड़पूँ बहुत ही,
मनाये भी ये दिल नहीं मानता है।

अमीरी गरीबी से क्या फ़र्क पड़ता,
जमाना किसी को नहीं बक्शता है।

बता दे हमें एक भी शख़्स ऐसा,
हुई जिन्दगी में न जिससे ख़ता है।

मुहब्बत की नजरों से दुनिया जो देखे,
उसी आदमी को खुदा चाहता है।

छुपायेगा कैसे 'नमन' उससे जिस को,
तेरी सारी गुस्ताखियों का पता है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
08.01.23

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