Thursday, March 14, 2019

गीतिका छंद "चातक पक्षी"

मास सावन की छटा सारी दिशा में छा गयी।
मेघ छाये हैं गगन में यह धरा हर्षित भयी।।
देख मेघों को सभी चातक विहग उल्लास में।
बूँद पाने स्वाति की पक्षी हृदय हैं आस में।।

पूर्ण दिन किल्लोल करता संग जोड़े के रहे।
भोर की करता प्रतीक्षा रात भर बिछुड़न सहे।।
'पी कहाँ' है 'पी कहाँ' की तान में ये बोलता।
जो विरह से हैं व्यथित उनका हृदय सुन डोलता।।

नीर बरखा बूँद का सीधा ग्रहण मुख में करे।
धुन बड़ी पक्की विहग की अन्यथा प्यासा मरे।।
एक टक नभ नीड़ से लख धैर्य धारण कर रखे।
खोल के मुख पूर्ण अपना बाट बरखा की लखे।।

धैर्य की प्रतिमूर्ति है यह सीख इससे लें सभी।
प्रीत जिससे है लगी छाँड़ै नहीं उसको कभी।।
चातकों सी धार धीरज दुख धरा के हम हरें।
लक्ष्य पाने की प्रतीक्षा पूर्ण निष्ठा से करें।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
08-07-2017

2 comments:

  1. ब्रजेश.जी शर्माWednesday, September 30, 2020 4:14:00 PM

    यह रचना प्रसिद्ध छंद आचार्य आदरणीय वासुदेव अग्रवाल नमन जी की है ।वह चातक पक्षी के बारे में संपूर्ण जानकारी अपने छंद द्वारा पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत करते हैं ।सावन के मौसम में गगन में मेघ छाये हैं । धरा के साथ-साथ चातक भी उल्लसित हैं ,इस उम्मीद में कि बरखा की बूंद उनकी प्यास बुझाने के काम आएगी । चातक पक्षी की खासियत बताते हुए वह कहते हैं कि पूरे दिन जोड़ा किलोल करता रहता है, और रात भर के लिए उसे बिछुड़ जाना होता है। इनकी पी-कहाँ , पी-कहाँ की पुकार से विरही हृदय डोलते हैं ।यह अपनी धुन का बड़ा पक्का पक्षी है ।बरखा का जल सीधे मुख में ग्रहण करता है । अंत में वे सुझाव देते हुए कहते हैं कि व्यक्ति को चातक सा, धैर्य की प्रतिमूर्ति होना चाहिए ।जिस से प्रीत लगी हो उसे छोड़े नहीं। लक्ष्य पाने के लिए पूर्ण निष्ठा से प्रयास करें और चातक के जैसा धीरज रख हम धरा के दुख दूर करने का प्रयास करें ।
    बेहद खूबसूरत सृजन हुआ भाई जी आनंद आ गया

    ब्रजेशजी शर्मा की 30-09-20 की समीक्षा।

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  2. आ0 ब्रजेश शर्मा जी समीक्षा के नये आयाम स्थापित करती आपकी समीक्षा अद्भुत है। मैं हृदय तल से आपका आभार व्यक्त करता हूँ।
    🙏🙏😀👏😀🙏🙏

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