बहर :- 122*3+ 12 (शक्ति छंद आधारित)
(पदांत 'रोटियाँ', समांत 'एं')
लगे ऐंठने आँत जब भूख से,
क्षुधा शांत तब ये करें रोटियाँ।।
लखे बाट सब ही विकल हो बड़े,
तवे पे न जब तक पकें रोटियाँ।।
तुम्हारे लिए पाप होतें सभी,
तुम्हारी कमी ना सहन हो कभी।
रहे म्लान मुख थाल में तुम न हो,
सभी बात मन की कहें रोटियाँ।।
भजन हो न जब पेट खाली रहे,
सभी मान अपमान भूखा सहे।
नहीं काम में मन लगे तुम बिना,
किसी की न कुछ भी सुनें रोटियाँ।।
तुम्हीं से चले आज व्यापार सब,
तुम्हारे बिना चैन हो प्राप्त कब।
जगत की रही एक चाहत यही,
लगे भूख जब भी मिलें रोटियाँ।।
अगर भूख जग को सताती नहीं,
न होता लहू का खराबा कहीं।
'नमन' ईश तुझसे यही प्रार्थना,
हरिक थाल में नित सजें रोटियाँ।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
16-03-18
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