Saturday, July 20, 2019

सावन विरह-गीत

सावन मनभावन तन हरषावन आया।
घायल कर पागल करता बादल छाया।।

क्यों मोर पपीहा मन में आग लगाये।
सोयी अभिलाषा तन की क्यों ये जगाये।
पी की यादों ने क्यों इतना मचलाया।
सावन -----

ये झूले भी मन को ना आज रिझाये।
ना बाग बगीचों की हरियाली भाये।
बेदर्द पिया ने कैसा प्यार जगाया।
सावन------

जब उमड़ घुमड़ के बैरी बादल कड़के।
तड़के जब बिजली आतुर जियरा धड़के।
याद करूँ ऐसे में पिय ने जब चिपटाया।
सावन-----

झूम झूम के सावन बीते क्या कहती।
यादों में उनकी ही मैं खोई रहती।
क्यों सखि ऐसे में निष्ठुर ने बिसराया।
सावन-----

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
25-07-16

No comments:

Post a Comment