Saturday, January 11, 2020

सरसी छंद "खेत और खलिहान"

सरसी छंद / कबीर छंद

गाँवों में हैं प्राण हमारे, दें इनको सम्मान।
भारत की पहचान सदा से, खेत और खलिहान।।

गाँवों की जीवन-शैली के, खेत रहे सोपान।
अर्थ व्यवस्था के पोषक हैं, खेत और खलिहान।।

अन्न धान्य से पूर्ण रखें ये, हैं अपने अभिमान।
फिर भी सुविधाओं से वंचित, खेत और खलिहान।।

अंध तरक्की के पीछे हम, भुला रहे पहचान।
बर्बादी की ओर अग्रसर, खेत और खलिहान।।

कृषक आत्महत्या करते हैं, सरकारें अनजान।
चुका रहे कीमत इनकी अब, खेत और खलिहान।।

अगर बचाना हमें देश को, मन में हो ये भान।
आगे बढ़ते रहें सदा ही, खेत और खलिहान।।


बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
08-03-18

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