नयन भरा है नीर, चखन श्याम के रूप को।
मन में नहिं है धीर, नयन विकल प्रभु दरस को।।
शरण तुम्हारी आज, आया हूँ घनश्याम मैं।
सभी बनाओ काज, तुम दीनन के नाथ हो।।
मन में नित ये आस, वृन्दावन में जा बसूँ।
रहूँ सदा मैं पास, फागुन में घनश्याम के।।
फूलों का श्रृंगार, माथे सजा गुलाल है।
तन मन जाऊँ वार, वृन्दावन के नाथ पर।।
पड़त नहीं है चैन, टपक रहे दृग बिंदु ये।
दिन कटते नहिं रैन, श्याम तुम्हारे दरस बिन।।
हे यसुमति के लाल, मन मोहन उर में बसो।
नित्य नवाऊँ भाल, भव बन्धन सारे हरो।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
30-04-19
मन में नहिं है धीर, नयन विकल प्रभु दरस को।।
शरण तुम्हारी आज, आया हूँ घनश्याम मैं।
सभी बनाओ काज, तुम दीनन के नाथ हो।।
मन में नित ये आस, वृन्दावन में जा बसूँ।
रहूँ सदा मैं पास, फागुन में घनश्याम के।।
फूलों का श्रृंगार, माथे सजा गुलाल है।
तन मन जाऊँ वार, वृन्दावन के नाथ पर।।
पड़त नहीं है चैन, टपक रहे दृग बिंदु ये।
दिन कटते नहिं रैन, श्याम तुम्हारे दरस बिन।।
हे यसुमति के लाल, मन मोहन उर में बसो।
नित्य नवाऊँ भाल, भव बन्धन सारे हरो।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
30-04-19
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