Tuesday, May 5, 2020

ग़ज़ल (न पैमाना वो जो फिर से भरा)

ग़ज़ल (न पैमाना वो जो फिर से)

बह्र:- 1222*4

न पैमाना वो जो फिर से भरा होने से पहले था,
नशा भी वो न जो वापस चढ़ा होने से पहले था।

बड़ा ही ख़ुशफ़हम शादीशुदा होने से पहले था,
बहुत आज़ाद मैं ये हादिसा होने से पहले था।

बसा देता है दुनिया इश्क़ दिल में ये गुमाँ सबके,
मुझे भी इश्क़ करने की सज़ा होने से पहले था।

भुलाने ग़म तो कर ली मय परस्ती पर पड़ी उल्टी,
बहुत खुश मैं नशे में ग़मज़दा होने से पहले था।

तसव्वुर से तेरे आज़ाद हो कर भी परिंदा यह,
अभी भी क़ैद जितना वो रिहा होने से पहले था।

मेरी तुझसे महब्बत का बताऊँ और क्या तुझ को,
तेरा उतना ही मैं जितना तेरा होने से पहले था।

जुदा इस बात में मैं भी नहीं औरों से हूँ यारो,
हर_इक समझे कि वो अच्छा, बुरा होने से पहले था।

नहीं जिसने कभी सीखा, हुआ जाता ख़फ़ा कैसे,
बताये क्या कि कैसा वो ख़फ़ा होने से पहले था।

'नमन' जब से फ़क़ीरी में रमे बाक़ी कहाँ वो मन,
जहाँ के जो रिवाजों से जुदा होने से पहले था।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
26-09-19

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