Saturday, July 11, 2020

जनक छंद (जल-संकट)

सरिता दूषित हो रही,
व्यथा जीव की अनकही,
संकट की भारी घड़ी।
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नीर-स्रोत कम हो रहे,
कैसे खेती ये सहे,
आज समस्या ये बड़ी।
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तरसै सब प्राणी नमी,
पानी की भारी कमी,
मुँह बाये है अब खड़ी।
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पर्यावरण उदास है,
वन का भारी ह्रास है,
भावी विपदा की झड़ी।
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जल-संचय पर नीति नहिं,
इससे कुछ भी प्रीति नहिं,
सबको अपनी ही पड़ी।
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चेते यदि हम अब नहीं,
ठौर हमें ना तब कहीं,
दुःखों की आगे कड़ी।
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नहीं भरोसा अब करें,
जल-संरक्षण सब करें,
सरकारें सारी सड़ी।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
29-05-19

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