Saturday, July 4, 2020

ग़ज़ल (माहोल ने बिगाड़ रखा आचरन)

बह्र:- 221  2121  1221  212

माहोल ने बिगाड़ रखा आचरन तमाम,
सारा जहाँ दिखा है रहा खोटपन तमाम।

मेरा कसूर मैंने महब्बत की बारबार,
उनसे सदा ही ग़म मिले पर आदतन तमाम।

नादान दिल न जान सका आपकी अदा,
घायल किया दिखा के इसे बाँकपन तमाम।

मतलब परस्ती का ही सियासत में दौर आज,
बिगड़ा हुआ है जिससे वतन का चलन तमाम।

कर के ख़राब रख दी व्यवस्था ही देश की,
काली कमाई खा के पलीं सालमन तमाम।

दहशत में जी रहा है हमारा ये मुल्क आज,
आतंक से खफ़ा है हमारा वतन तमाम।

जो देश हित में झोंक दे अपने को नौजवाँ,
अर्पण उन्हें मैं नित करूँ मेरे 'नमन' तमाम।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-11-16

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