Sunday, September 20, 2020

गुर्वा (पीड़ा)

अत्याचार देख भागें,

शांति शांति चिल्लाते,

छद्म छोड़ अब तो जागें।

***


पीड़ा सारी कहता,

नीर नयन से बहता,

अंधी दुनिया हँसती।

***


बाढ कहीं तो सूखा है,

सिसक रहे वन उजड़े,

मनुज लोभ का भूखा है,

***


बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

तिनसुकिया

28-04-20

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