बह्र:- 212*4
जगमगाते दियों से मही खिल उठी,
शह्र हो गाँव हो हर गली खिल उठी।
लायी खुशियाँ ये दीपावली झोली भर,
आज चेह्रों पे सब के हँसी खिल उठी।
आप देखो जिधर नव उमंगें उधर,
हर महल खिल उठा झोंपड़ी खिल उठी।
सुर्खियाँ सब के गालों पे ऐसी लगे,
कुमकुमे हँस दिये रोशनी खिल उठी।
आज छोटे बड़े के मिटे भेद सब,
सबके मन में खुशी की कली खिल उठी।
नन्हे नन्हे से हाथों में भी हर तरफ,
रोशनी से भरी फुलझड़ी खिल उठी।
दीप उत्सव पे ग़ज़लों की रौनक 'नमन'
ब्लॉग में दीप की ज्योत सी खिल उठी।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
08-10-2017
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