दोहा छंद
मन में धुन गहरी चढ़े, जग का रहे न भान।
कार्य असम्भव नर करे, विपद नहीं व्यवधान।।
तुलसी को जब धुन चढ़ी, हुआ रज्जु सम व्याल।
मीरा माधव प्रेम में, विष पी गयी कराल।।
ज्ञान प्राप्ति की धुन चढ़े, कालिदास सा मूढ़।
कवि कुल भूषण वो बने, काव्य रचे अति गूढ़।।
ज्ञानार्जन जब लक्ष्य हो, करलें चित्त अधीन।
ध्यान ध्येय पे राखलें, लखे सर्प ज्यों बीन।।
आस पास को भूल के, मन प्रेमी में लीन।
गहरा नाता जोड़िए, ज्यों पानी से मीन।।
अंतर में जब ज्ञान का, करता सूर्य प्रकाश।
अंधकार अज्ञान का, करे निशा सम नाश।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
12-10-2016
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