बह्र:- 221 2121 1221 212
तूफाँ में चल सको तो मेरे साथ तुम चलो।
दुनिया उथल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।
सत्ता के नाग फन को उठाए रहे हैं फिर।
इनको कुचल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।
बदहाली, भूख में भी सियासत का दौर है।
ढर्रा बदल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।
सब जी रहे हैं कल के सुनहरे से ख्वाब में।
गर ला वो कल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।
ईमान सब का डिग रहा पैसे के वास्ते।
जो रह अटल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।
नेतागिरी यहाँ चले भांडों से स्वांग में।
इससे निकल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।
झूठे खिताब-ओ-नाम को पाने में सब लगे।
इन सब से टल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।
सेवा करें जो देश की गल गल के बर्फ में।
गर उन सा गल सको तो मेरे साथ तुम चलो।
लफ़्फ़ाजी का ही मंचों पे अब तो बड़ा चलन।
इससे उबल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।
निर्बल हैं वर्तमान के हालात में सभी।
यदि बन सबल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।
इक क्रांति की लपट की प्रतीक्षा में जग 'नमन'।
दे वो अनल सको तो मेरे साथ तुम चलो।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
28-01-19
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