Wednesday, October 13, 2021

विमलजला छंद "राम शरण"

 विमलजला छंद 
"राम शरण"

जग पेट भरण में।
रत पाप करण में।।
जग में यदि अटका।
फिर तो नर भटका।।

मन ये विचलित है।
प्रभु-भक्ति रहित है।।
अति दीन दुखित है।।
हरि-नाम विहित है।।

तन पावन कर के।
मन शोधन कर के।।
लग राम चरण में।
गति ईश शरण में।।

कर निर्मल मति को।
भज ले रघुपति को।।
नित राम सुमरना।
भवसागर तरना।।
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विमलजला छंद विधान -

"सनलाग" वरण ला।
रचलें 'विमलजला'।।

"सनलाग" = सगण नगण लघु गुरु

112  111  12 = 8 वर्ण
चार चरण। दो दो समतुकांत
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
20-05-17

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