गुर्वा विधा
"हवा"
पूरब में है लाली,
हवा चले मतवाली,
मौक्तिकमय हरियाली।
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जल तरंग को हवा बजाये,
चिड़ियाँ गाएँ गीत,
प्रकृति दिखाये पग-पग प्रीत।
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खिली हुई है अमराई,
सनन बहे पुरवाई,
स्वाद चखे नासा मीठा।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-07-20
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