Sunday, November 14, 2021

गुर्वा (मानव)

भगवन भी पछताये,
शक्तिमान रच मानव,
सृष्टि नष्ट करता दानव।
***

ओस कणों सा है मानव,
संघर्षों की धूप,
अब अस्तित्व करे तांडव।
***

धैर्य धीर धर के निर्लिप्त,
कुटिल हृदय झुँझलाएँ,
कमल पंक में इठलाएँ।
***

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
26-07-20

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