नवम तिथि सुहानी, चैत्र मासा।
अवधपति करेंगे, ताप नासा।।
सकल गुण निधाना, दुःख हारे।
चरण सर नवाएँ, आज सारे।।
मुदित मन अयोध्या, आज सारी।
दशरथ नृप में भी, मोद भारी।।
हरषित मन तीनों, माइयों का।
जनम दिवस चारों, भाइयों का।।
नवल नगर न्यारा, आज लागे।
इस प्रभु-पुर के तो, भाग्य जागे।।
घर घर ढ़प बाजे, ढोल गाजे।
गलियन रँगरोली, खूब साजे।।
प्रमुदित नर नारी, गीत गायें।
जहँ तहँ मिल धूमें, वे मचायें।।
हम सब मिल के ये, पर्व मानें।
रघुवर-गुण प्यारे, ही बखानें।।
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पुट छंद विधान -
"ननमय" यति राखें, आठ चारा।
'पुट' मधुर रचायें, छंद प्यारा।।
"ननमय" = नगण नगण मगण यगण
111 111 22,2 122 = 12वर्ण, यति 8,4
चार पद दो दो समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
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