ग़ज़ल (देखली है शानो शौकत)
बहर:- 2122 2122 212
देखली है शान-ओ-शौकत आपकी,
देखनी है अब हक़ीक़त आपकी।
झेलते आए हैं जिसको अब तलक,
दी हुई सारी ही आफ़त आपकी।
ट्वीटरों पर लम्बी लम्बी झाड़ते,
जानते सारे शराफ़त आपकी।
दुश्मनों की फ़िक्र नफ़रत देश से,
अब न भाती ये तिज़ारत आपकी।
खानदानी देश की संसद समझ,
हो गई काफ़ी सियासत आपकी।
हर जगह मासूमियत के चर्चे हैं,
हाय अल्लाह क्या नज़ाकत आपकी।
वक़्त अब भी कर दिखादें कुछ 'नमन',
इससे ही बच जाये इज्जत आपकी।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-11-2018
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