Friday, August 16, 2019

कहमुकरी (विविध)

मीठा बोले भाव उभारे
तोड़े वादों में नभ तारे
सदा दिलासा झूठी देता
ए सखि साजन? नहिं सखि नेता!

सपने में नित इसको लपकूँ
मिल जाये तो इससे चिपकूँ
मेरे ये उर वसी उर्वसी
ए सखा सजनि? ना रे कुर्सी!

जिसके डर से तन मन काँपे
घात लगा कर वो सखि चाँपे
पूरा वह निष्ठुर उन्मादी
क्या साजन? न आतंकवादी!

गिरगिट जैसा रंग बदलता
रार करण वो सदा मचलता
उसकी समझुँ न कारिस्तानी
क्या साजन? नहिं पाकिस्तानी!

भेद न जो काहू से खोलूँ
इससे सब कुछ खुल के बोलूँ
उर में छवि जिसकी नित रखली
ए सखि साजन? नहिं तुम पगली!

बारिस में हो कर मतवाला,
नाचे जैसे पी कर हाला,
गीत सुनाये वह चितचोर,
क्या सखि साजन, ना सखि मोर।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
25-05-17

2 comments:

  1. आ0 जय गोविंदजी, लोसलTuesday, November 19, 2019 10:39:00 AM

    कहमुकरी कह कह सरसाये
    गीत ग़ज़ल, छंदो में गाये
    ज्ञान, काव्य के मुनि के जैसा
    का सखि साजन, नहीं, नमन सा।

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  2. आ0 अनिल अनंत जीTuesday, November 19, 2019 10:41:00 AM

    काजल बिंदी महावर लिखता।
    छंद गजल कविता रस जीता।
    काव्य कला उसका है तन मन।
    कहो सखि साजन?? नहीं नमन।।

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