Thursday, April 4, 2019

ग़ज़ल (क़ज़ा है, कज़ा है, क़ज़ा है)

बह्र:- 122  122 122

यहाँ अब न कोई बचा है,
सगा है, सगा है, सगा है।

मुहब्बत की बुनियाद क्या है?
वफ़ा है, वफ़ा है, वफ़ा है।

जिधर देखिए इस जहाँ में,
दगा है, दगा है, दगा है।

खुदा तेरी दुनिया में जीना,
सज़ा है, सज़ा है, सज़ा है।

हर_इंसान इंसान से क्यों,
खफ़ा है, खफ़ा है, खफ़ा है।

भलाई किसी की भी करना,
ख़ता है, ख़ता है, ख़ता है।

'नमन' दिल किसीसे लगाना,
क़ज़ा है, क़ज़ा है, क़ज़ा है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-07-17

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