बह्र:- 122 122 122
बजे कृष्ण की बंसिया है,
हुई मग्न वृषभानुजा है।
यहाँ जितनी हैं गोपबाला,
उते रूप मोहन रचा है।
हर_इक गोपी संग_एक कान्हा,
मिला हाथ घेरा बना है।
लगा गोल चक्कर वे नाचेंं,
महारास की क्या छटा है।
बजे पैंजनी और घूँघर,
सुहाना समा ये बँधा है।
मधुर मास सावन का आया,
हरित हो गई ब्रज धरा है।
करूँ मैं 'नमन' ब्रज की रज को,
यहाँ श्याम कण कण बसा है।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
09-07-2017
बजे कृष्ण की बंसिया है,
हुई मग्न वृषभानुजा है।
यहाँ जितनी हैं गोपबाला,
उते रूप मोहन रचा है।
हर_इक गोपी संग_एक कान्हा,
मिला हाथ घेरा बना है।
लगा गोल चक्कर वे नाचेंं,
महारास की क्या छटा है।
बजे पैंजनी और घूँघर,
सुहाना समा ये बँधा है।
मधुर मास सावन का आया,
हरित हो गई ब्रज धरा है।
करूँ मैं 'नमन' ब्रज की रज को,
यहाँ श्याम कण कण बसा है।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
09-07-2017
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