बह्र:- 1222 1222 122
हमारे मन में ये व्रत धार लेंगे,
भुला नफ़रत सभी को प्यार देंगे।
रहेंगे जीते हम झूठी अना में,
भले ही घूँट कड़वे हम पियेंगे।
भले पहुँचे कहाँ से जग कहाँ तक,
जहाँ हम थे वहीं अब भी रहेंगे।
इसी उम्मीद में हैं जी रहे अब,
कभी तो आसमाँ हम भी छुयेंगे।
रे मन परवाह करना छोड़ जग की,
भले तुझको दिखाएँ लोग ठेंगे।
रहो बारिश में अच्छे दिन की तुम तर,
मगर हम पे जरा ये कब चुयेंगे।
नए ख्वाबों की झड़ लगने ही वाली,
उन्हीं पे पाँच वर्षों तक जियेंगे।
तु सुध ले या न ले, यादों के तेरी,
ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे।
रखो कोशिश 'नमन' दिल जोड़ने की,
कभी तो टूटे दिल वापस मिलेंगे।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-11-18
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