Wednesday, May 8, 2019

ग़ज़ल (रहें बस चुप! शराफ़त है)

बह्र:- 1222   1222   122

रहें बस चुप! शराफ़त है? नहीं तो,
जुबाँ खोलें? इजाजत है? नहीं तो।

करें हासिल अगर हक़ लड़के अपना,
तो ये लड़ना अदावत है? नहीं तो।

बड़े मासूम बन वादों से मुकरो,
कोई ये भी सियासत है? नहीं तो।

दिखाए आँख हाथी को जो चूहा,
भला उसकी ये हिम्मत है? नहीं तो।

है आमादा कोई गर जंग पर ही,
सुलह चाहें जलालत है? नहीं तो।

कयामत ढ़ा रही है मुफ़लिसी अब,
ज़रा भी दिल में हैरत है? नहीं तो।

'नमन' जुल्म-ओ-सितम पर चुप ही रहना,
यही दुनिया की फ़ितरत है? नहीं तो।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
15-04-2017

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