Monday, April 3, 2023

छंदा सागर (मिश्र छंदाऐँ)


                        पाठ - 09

छंदा सागर ग्रन्थ

"मिश्र छंदाऐँ"


सप्तम पाठ में हमने एक ही गुच्छक की विभिन्न आवृत्तियों पर आधारित वृत्त छंदाओं का विस्तृत अध्ययन किया। अष्टम पाठ में हमारा परिचय गुरु छंदाओं से हुआ जिनमें केवल गुरु वर्ण रहते हैं। अब इस नवम पाठ से हम मिश्र छंदाओं के विस्तृत संसार में प्रविष्ट हो रहे हैं। मिश्र छंदाओं की संरचना विभिन्न प्रकार से होती है। छंदा में एक ही गण पर आधारित विभिन्न गुच्छक रह सकते हैं, उन गुच्छकों में वर्णों का स्वतंत्र संयोजन हो सकता है या छंदा में एक से अधिक गण का प्रयोग हो सकता है। 

ये मिश्र छंदाएँ उसमें प्रयुक्त प्रथम गण के आधार पर वर्गीकृत की गयी हैं। कुल आठ गण हैं। इनमें नगण (111) आधारित गुच्छक का प्रयोग केवल वर्णिक स्वरूप की छंदाओं में ही होता है जिनका अवलोकन हम वर्णिक छंदाओं के पाठ में करेंगे। मिश्र छंदाओं की श्रंखला में हम बाकी बचे सात गण के आधार पर बनी छंदाओं का अध्ययन करेंगे। प्रत्येक पाठ में छंदाओं का वर्गीकरण छंदा के स्वरूप के आधार पर किया गया है।

छंदा की मापनी में जहाँ भी 11 लिखा जाता है या छंदा के नाम में 'लु' संकेतक का प्रयोग होता है तो वह सदैव ऊलल वर्ण ही होता है। वाचिक स्वरूप में इसे शास्वत दीर्घ के रूप में नहीं ले सकते क्योंकि शास्वत दीर्घ गुरु वर्ण का ही दूसरा रूप है। जबकि मात्रिक और वर्णिक स्वरूप में इन्हें शास्वत दीर्घ के रूप में एक शब्द में भी रखा जा सकता है। केवल गुरु वर्ण पर आधरित गुरु छंदाओं का काव्य में अलग ही महत्व है। इन छंदाओं में म और ग इन दो ही वर्ण के संकेतक का प्रयोग होता है। (केवल लघु वृद्धि छंदाओं के अंत में ल वर्ण का प्रयोग मान्य है।) गुरु छंदाओं के वाचिक स्वरूप में गुरु वर्ण को ऊलल वर्ण में तोड़ा जा सकता है। 

मिश्र छंदाओं के वाचिक और मात्रिक स्वरूप में भी जहाँ केवल गुरु वर्ण युक्त वर्ण या गुच्छक हों तो वाचिक स्वरूप में उसके ऐसे किसी भी गुरु को ऊलल (11) के रूप में लिया जा सकता है जिसके दोनों तरफ गुरु वर्ण रहे। ऐसे वर्ण गुरु (2) और ईगागा (22) हैं। गुच्छक में मगण आधारित 9 के 9 गुच्छक में यह छूट है। जैसे तींमा छंदा में मकार युक्त गुच्छक है। छंदा का स्वरूप देखने से यह पता चलता है कि केवल मगण का मध्य गुरु ऐसा है जिसके दोनों तरफ गुरु वर्ण हैं। रचना कार यदि चाहे तो उसे ऊलल के रूप में तोड़ सकता है। इसी प्रकार तूमा छंदा के मगण के आदि या मध्य के किसी भी गुरु को ऊलल में तोड़ सकते हैं। 

गुरु छंदाओं में तो गुरु वर्ण को ऊलल वर्ण में तोड़ने की छूट रहती है परंतु ऐसे अनेक बहुप्रचलित छंद हैं जिन में केवल गुरु वर्ण (2) और उनके मध्य में ऊलल (11) वर्ण का समावेश विधान के अंतर्गत आता है।  हम इन मिश्र छंदाओं के पाठों में ऐसी छंदाओं को अलग से वर्गीकृत करेंगे। इन्हें हम गुरु-लूकी छंदाएँ कहेंगे। गुरु लूकी छंदाएँ आधार गण मगण, तगण, भगण और सगण रहने से ही बन सकती हैं। इन चारों गणों की छंदाओं में सर्वप्रथम गुरु लूकी छंदाएँ ही दी गयी हैं।

इसके पश्चात गणावृत्त छंदाएँ दी गयी हैं। इन छंदाओं में केवल आधार गण पर आधारित गुच्छक ही रहते हैं। किसी भी गण के 9 गुच्छक होते हैं। इन गणावृत्त छंदाओं में एक से चार तक गुच्छक रहते हैं। केवल एक गुच्छक की छंदाओं में एक गुच्छक और अंत में स्वतंत्र वर्ण संयोजन रहता है। द्विगुच्छकी छंदाओं में एक ही गुच्छक की दो आवृत्ति हो सकती है या दो विभिन्न गुच्छक हो सकते हैं। इनमें अंत में, मध्य में या अंत और मध्य दोनों स्थान पर वर्ण संयोजन हो सकता है। त्रिगुच्छकी छंदाओं में एक ही गुच्छक की तीन आवृत्ति हो सकती है। एक गुच्छक की दो आवृत्ति और अन्य गुच्छक रह सकता है या तीनों अलग गुच्छक हो सकते हैं। चतुष गुच्छकी छंदाओं में आवृत्तियों की प्रमुखता रहती है।

वर्ण संयोजन:- मिश्र छंदाओं में वर्ण संयोजन का अत्यंत महत्व है। कुल वर्ण 6 हैं। गण में इन वर्णों के संयोजन से गणक बनते हैं। वृत्त छंदाओं में हम गण और विविध गणक की आवृत्ति की छंदाओं का अध्ययन कर चुके हैं। एक ही गण आधारित गुच्छक की आवृत्ति से भी छंदाओं में विशेष लय बनती है क्योंकि आधार गण की समानता रहती है। 6 वर्ण तथा जगण और तगण को युज्य के रूप में जोड़ने से हमें प्रत्येक गण से 8 गणक प्राप्त होते हैं। यहाँ मिश्र छंदाओं में हम ऐसी छंदाएँ सम्मिलित नहीं करेंगे जिनमें दो से अधिक लघु एक साथ हो या अंत में ऊलल वर्ण (11) पड़े।

अंत में बहुगणी छंदाएँ दी गयी हैं। जिन छंदाओं में एक से अधिक गणों के गुच्छकों का समावेश है, वे बहुगणी छंदाओं की श्रेणी में आती है।

छंदाओं का नामकरण:- छंदा में वर्ण की संख्या के अनुसार नामकरण की निम्न प्रकार से परंपराएँ निभाई जाती है -
4 वर्ण - गणक संकेत और 'क', जैसे यीका, रीकण।
5 वर्ण - गणक संकेत और 'क', जैसे तैका, सूकव। 
6 वर्ण - 5+1 गणक और वर्ण। जैसे 22121 2 = तींगा, तींगण। यदि संभव हो तो गणक संकेत और 'क', जैसे सूंका, रैंका।
7 वर्ण - 5+2 गणक और वर्ण। जैसे 22121 22 = तींगी, तींगिव
8 वर्ण - 6+2 गणक और वर्ण यदि संभव हो जैसे 221121 22 = तूंगी। अन्यथा 5+3 गणक और गण जैसे 22121 212 = तींरा
9 वर्ण - 6+3 गणक और गण यदि संभव हो जैसे 122221 212 = यैंरा, यैंरण, यैंरव। अन्यथा 5+4 दो गणक जैसे 22121 2122 = तींरी
10 वर्ण - 6+4 या 5+5 दो गणक। जैसे 122121 2112 = यूंभी या 22121 12222 = तींये।

उपरोक्त परंपराएँ वर्ण संख्या के आधार पर निभाई जाने वाली सामान्य परंपराएँ हैं। परंतु छंदों में गणों की आवृत्ति का बहुत महत्व है। छंदाओं के नामकरण में किसी भी प्रकार की आवृत्ति को सदैव प्राथमिकता दी जाती है। इन प्राथमिकताओं का क्रम निम्नानुसार है।
(1) सर्व प्रथम आधार गुच्छक की आवृत्ति की प्राथमिकता रहती है। जैसे 212*2 2 = रादग का नाम 21221 22 = रींगी नहीं रखा जा सकता। 2122 21211 2 = रीरोगा का 212221 2112 = रैंभी नाम नहीं होगा। इस छंदा में दो रगणाश्रित गुच्छक आवृत्त हो रहे हैं जिनकी छंदा के नामकरण में प्राथमिकता है।
(2) आधार गण यदि छंदा के अंत के गुच्छक में पुनरावृत्त हो रहा है तो उसकी प्राथमिकता है। जैसे 12221 212 122 = यींरय को 12221 21212 2 = यींरुग नाम देना उचित नहीं।
(3) आधार गण के पश्चात यदि अन्य गण की किसी भी प्रकार की आवृत्ति बन रही है तो ऐसी आवृत्ति की प्राथमिकता रहती है।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

Friday, March 31, 2023

दोहा छंद "दोहामाल" (वयन सगाई अलंकार)


वयन सगाई अलंकार / वैण सगाई अलंकार


आदि देव दें आसरा, आप कृपालु अनंत।
अमल बना कर आचरण, अघ का कर दें अंत।।

काली भद्रा कालिका, कर में खड़ग कराल।
कल्याणी की हो कृपा, कटे कष्ट का काल।।

गदगद ब्रज की गोपियाँ, गिरधर मले गुलाल।
ग्वालन होरी गावते, गउन लखे गोपाल।।

चन्द्र खिलाये चांदनी, चहकें चारु चकोर।
चित्त चुराके चंचला, चल दी सजनी चोर।।

जगमग मन दीपक जले, जब मैं हुई जवान।
जबर विकल होगा जिया, जरा न पायी जान।।

ठाले करते ठाकरी, ठाकुर बने ठगेस।
ठेंगा दिखला ठगकरी, ठग करके दे ठेस।।

डगमग चलती डोकरी, डट के लेय डकार।
डिग डिग तय करती डगर, डांड हाथ में डार।।

तड़प राह पिय की तकूँ, तन के बिखरे तार।
तारों की लगती तपिश, तीखी ज्यों तलवार।।

दान हड़पने की दिखे, दर-दर आज दुकान।
दाता ऐसों को न दे, दे सुपात्र लख दान।।

नख सिख दमकै नागरी, नस नस भरा निखार।
नागर क्यों ललचे नहीं, निरख निराली नार।।

पथ वैतरणी है प्रखर, पापों की सर पोट।
पार करें किस विध प्रभू, पातक जगत-प्रकोट।।

भूखे पेट न हो भजन, भर दे शिव भंडार।
भक्तों का करके भरण, भोले मेटो भार।।

मधुर ओष्ठ हैं मदभरे, मोहक ग्रीव मृणाल।
मादक नैना मटकते, मन्थर चाल मराल।।

यत्न सहित सब योजना, योजित करें युवान।
यज्ञ रूप तब देश यह, यश के चढ़ता यान।।

रे मन तुझ को रमणियाँ, रह रह रहें रिझाय।
राम-भजन में अब रमो, राह दिखाती राय।।

लोभी मन जग-लालसा, लेवे क्यों तु लगाय।
लप लप करती यह लपट, लगातार ललचाय।।

वारिज कर में शुभ्र वर, वाहन हंस विहार।
विद्या दे वागीश्वरी, वारण करो विकार।।

सदा भजो मन साँवरा, सारे जग का सार।
सजन मात पितु या सखा, सभी रूप साकार।।

हरि की मोहक छवि हृदय, हरपल रहे हमार।
हर विपदा भव की हरे, हरि के हाथ हजार।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
20-11-2018

Saturday, March 25, 2023

बसंत और पलाश (कुण्डलिया)

कुण्डलिया छंद


दहके झूम पलाश सब, रतनारे हों आज।
मानो खेलन फाग को, आया है ऋतुराज।
आया है ऋतुराज, चाव में मोद मनाता।
संग खेलने फाग, वधू सी प्रकृति सजाता।
लता वृक्ष सब आज, नये पल्लव पा महके।
लख बसंत का साज, हृदय रसिकों के दहके।।

शाखा सब कचनार की, करने लगी धमाल।
फागुन की मनुहार में, हुई फूल के लाल।
हुई फूल के लाल, बैंगनी और गुलाबी।
आया देख बसंत, छटा भी हुई शराबी।
'बासुदेव' है मग्न, रूप जिसने यह चाखा।
जलती लगे मशाल, आज वन की हर शाखा।।

हर पतझड़ के बाद में, आती सदा बहार।
परिवर्तन पर जग टिका, हँस के कर स्वीकार।
हँस के कर स्वीकार, शुष्क पतझड़ की ज्वाला।
चाहो सुख-रस-धार, पियो दुख का विष-प्याला।
कहे 'बासु' समझाय, देत शिक्षा हर तरुवर।
सेवा कर निष्काम, जगत में सब के दुख हर।।

कागज की सी पंखुड़ी, संख्या बहुल पलास।
शोभा सभी दिखावटी, थोड़ी भी न सुवास।
थोड़ी भी न सुवास, वृक्ष पे पूरे छाते।
झड़ के यूँ ही व्यर्थ, पैर से कुचले जाते।
ओढ़ें झूठी आभ, बनें बैठे ये दिग्गज।
चमके ज्यों बिन लेख, साफ सुथरा सा कागज।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
14-03-2017

Wednesday, March 15, 2023

ग़ज़ल (मैं उजाले की लिए चाह)

बह्र:- 2122  1122  1122  22

मैं उजाले की लिए चाह सफ़र पर निकला,
पर अँधेरों में भटकने का मुकद्दर निकला।

जो दिखाता था सदा बन के मेरा हमराही,
मेरी राहों का वो सबसे बड़ा पत्थर निकला।

दोस्त कहलाते जो थे उन पे रहा अब न यकीं,
आजमाया जिसे भी, जह्र का खंजर निकला।

पास जिसके भी गया प्रीत का दरिया मैं समझ,
पर अना में ही मचलता वो समंदर निकला।

कारवाँ ज़ीस्त की राहों का मैं समझा था जिसे,
नफ़रतों से ही भरा बस वो तो लश्कर निकला।

जीत के जो भी यहाँ आया था रहबर बन के,
सिर्फ अदना सा हुकूमत का वो चाकर निकला।

दोस्तों पर था बड़ा नाज़ 'नमन' को हरदम,
काम पड़ते ही हर_इक आँख बचा कर निकला।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
27-06-19

Friday, March 10, 2023

छंदा सागर (गुरु छंदाएँ)

                        पाठ - 08

छंदा सागर ग्रन्थ

"गुरु छंदाएँ"

इसके पिछले पाठ में हमने वृत्त छंदाओं का विस्तारपूर्वक अध्ययन किया। इस पाठ में हम गुरु छंदाओं पर प्रकाश डालेंगे। पंचम पाठ "छंद के घटक - छंदा" में गुरु छंदा की परिभाषा दी गई है। गुरु छंदाएँ वाचिक, मात्रिक, वर्णिक तीनों स्वरूप में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। अतः इस पाठ में भी वृत्त छंदाओं की तरह तीनों स्वरूप की छंदाएँ दी गई हैं। साथ ही अंत में लघु वृद्धि की भी अलग से छंदाएँ दी गई हैं।

वर्णिक स्वरूप की गुरु छंदाओं में रचना सपाट होती है क्योंकि उनमें गुरु वर्ण सदैव दीर्घ रहता है। इसे शास्वत दीर्घ के रूप में नहीं तोड़ा जा सकता। मात्रिक स्वरूप में इन पर रचना बहुत ही लोचदार और लययुक्त होती है। हिंदी मात्रिक छंदों की संरचना समकल पर आधारित है जिनमें कल संयोजन पर बल दिया जाता है न कि लघु गुरु के क्रम पर। छठे पाठ में समकलों की विस्तृत व्याख्या की गई है जो कि मात्रिक गुरु छंदाओं का आधार है। मात्रिक स्वरूप में रचना करते समय चौकल, अठकल और छक्कल का कल संयोजन आवश्यक है न कि लघु और दीर्घ कहाँ और कैसे गिर रहे हैं। वाचिक स्वरूप में शास्वत दीर्घ यानी एक शब्द में साथ साथ आये दो लघु को गुरु वर्ण माना जाता है।

गुरु छंदाओं के संदर्भ में वाचिक में हम गुरु वर्ण को दो लघु में तोड़ सकते हैं जो एक शब्द में भी हो सकते हैं अथवा दो शब्द में भी पर इनमें मात्रा पतन के नियम सामान्य नियम से भिन्न हैं। वैसे तो गुरु छंदाओं में मात्रा पतन मान्य नहीं है, पर यदि 'उगाल' वर्ण (21) के पश्चात एक अक्षरी गुरु शब्द जैसे का, की, है, में, मैं, वे आदि हैं तो उन्हें लघु के रूप में लिया जा सकता है। जैसे 'राम की माया राम ही जाने' में 'की' 'ही' को लघु उच्चरित करते हुए 2222*2 माना जा सकता है। एक अक्षरी संयुक्ताक्षर शब्द जैसे क्या, क्यों की मात्रा नहीं गिराई जा सकती। 

एक मीबम छंदा (2222*3  222) का मेरा द्विपदी मुक्ता देखें जिसमें कई स्थान पर मात्रा पतन है पर लय भटकी हुई नहीं है। 

"उसके हुस्न की' आग में' जलते दिल को चैन की' साँस मिले,
होश को' खो के जोश में' जब भी वह आगोश में' आए तो।"

मीबम में तीन अठकल और एक छक्कल है। ऐसा मात्रा पतन अठकल या छक्कल में एक बार ही होना चाहिए।

अब हम गुरु छंदाओं की संरचना करते हैं। गुरु छंदाओं में अठकल (2222) को आधार माना गया है इसलिए छंदाओं का नामकरण उसी के अनुसार है। साथ ही छक्कल आधारित छंदाएँ भी हैं।

(1) 2222 = मीका, मीकण (अखण्ड छंद), मीकव (तिन्ना छंद)
22221 = मींका, मींकण, मींकव

(2) 2222 2 = मीगा, मीगण, मीगव (सम्मोहा छंद)
2222 21 = मीगू, मीगुण, मीगुव

(3) 2222 22 = मीगी, मीगिण, मीगिव (विद्युल्लेखा,शेषराज छंद)
2222  22 +1 = मीगिल, मीगीलण, मीगीलव

(4) 2222  222 = मीमा, मीमण (मानव छंद),
मीमव (शीर्षा/शिष्या छंद)
2222  2221 = मीमल, मीमालण, मीमालव

(5) 2222*2 = मीदा, मीदण, मीदव
2222, 2222 = मीधव (विद्युन्माला छंद)
2222*2 + 1= मीदल, मीदालण, मीदालव

(6) 2222*2  2 = मीदग, मीदागण, मीदागव
2222*2  21 = मिदगू, मीदागुण (तमाल छंद), मीदागुव
2222 2, 2222 2 = मीगध, मीगाधण, मीगाधव
2222 2, 2222 2 +1 = मीगाधल, मीगधलण, मीगधलव
2222 21, 2222 21  = मीगुध, मीगूधण, मीगूधव

(7) 2222*2  22 = मिदगी, मीदागिण, मीदागिव (शोभावती छंद)
2222*2  22 +1 = मीदागिल, मिदगीलण, मिदगीलव

(8) 2222*2  222 = मीदम, मीदामण, मीदामव
2222*2  2221 = मीदामल, मीदमलण, मीदमलव

(9) 2222*3 = मीबा, मीबण, मीबव
 2222*3 + 1 = मीबल, मीबालण, मीबालव
2222 22, 2222 22 = मीगिध, मीगीधण, मीगीधव
2222 22, 2222 22 +1 = मीगीधल, मीगिधलण, मीगिधलव
2222 22+1, 2222 22+1 = मीगींधा, मीगींधण, मीगींधव

(10) 2222*3  2 = मीबग, मीबागण, मीबागव
2222*3 21 = मिबगू, मीबागुण, मीबागुव

(11) 2222*3  22 = मिबगी, मीबागिण, मीबागिव
2222*3  22 +1 = मीबागिल, मिबगीलण, मिबगीलव
2222  222, 2222  222 = मीमध, मीमाधण, मीमाधव
2222  222, 2222  222 +1 = मीमाधल, मीमधलण, मीमधलव
2222  2221, 2222  2221 = मीमंधा, मीमंधण, मीमंधव

(12) 2222*3  222 = मीबम, मीबामण, मीबामव
2222*3  2221 = मीबामल, मीबमलण, मीबमलव
2222*2, 2222 222 = मीदंमिम, मीदंमीमण, मीदंमीमव (सारंगी छंद)
(दं संकेतक ईमग गुच्छक को द्विगुणित भी कर रहा है तथा वहाँ पर यति भी दर्शा रहा है।)

(13) 2222*4 = मीचा, मीचण, मीचव
2222*4 + 1= मीचल, मीचालण, मीचालव
2222*2, 2222*2  = मीदध, मीदाधण, मीदाधव
2222*2, 2222*2 + 1 = मीदाधल, मीदधलण, मीदधलव
2222*2 + 1, 2222*2 + 1 = मीदालध, मीदलधण, मीदलधव
***

केवल छक्कल आधारित छंदाएँ:-

222*2 = मादा, मादण, मादव

2221*2 = मंदा, मंदण (सुलक्षण छंद), मंदव

2221, 2221 =  मंधव  = (वापी छंद)

222*3 = माबा, माबण, माबव

222*4 = माचा, माचण, माचव
222*2, 222*2  = मादध, मदधण, मदधव (विद्याधारी छंद)
222*2 + 1, 222*2 + 1 = मदलध, मादलधण, मादलधव
***

उपरोक्त छंदाओं की मात्रा बाँट के विषय में प्रमुखता इस बात की है कि 4 से विभाजित छंदाओं की मात्रा जैसे 2*4, 2*6, 2*10, 2*14 आदि में चौकल अठकल का कोई भी संभावित क्रम लिया जा सकता है। 4 से विभाजन के बाद यदि 2 शेष बचता है तो यह छंदाओं के अंत में ही आयेगा, मध्य में नहीं। एक मीदामण (2222*2  222) छंदा की मात्रा बाँट ध्यान पूर्वक देखें -

8*2 + 4 + 2; 
8 + 4*3 + 2;
4 + 8*2 + 2;
4 + 8 + 4*2 + 2;
4*2 + 8 + 4 + 2;
4*3 + 8 + 2;
4*5 + 2;

इस छंदा की 7 संभावित मात्रा बाँट है और रचना के किसी भी पद में कोई सी भी एक बाँट प्रयुक्त की जा सकती है।

(विशेष:- चतुर्थ पाठ में बताये गये संख्यावाचक संकेतकों का ध्यानपूर्वक अध्ययन करें और देखें कि इन छंदाओं में उन संकेतक का किस प्रकार प्रयोग किया गया है।)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

Saturday, March 4, 2023

ताँका विधान

ताँका कविता कुल पाँच पंक्तियों की जापानी विधा की रचना है। इसमें प्रति पंक्ति निश्चित संख्या में वर्ण रहते हैं। प्रति पंक्ति निम्न क्रम में वर्ण रहते हैं।

प्रथम पंक्ति - 5 वर्ण
द्वितीय पंक्ति - 7 वर्ण
तृतीय पंक्ति - 5 वर्ण
चतुर्थ पंक्ति - 7 वर्ण
पंचम पंक्ति - 7 वर्ण

(वर्ण गणना में लघु, दीर्घ और संयुक्ताक्षर सब मान्य हैं। अन्य जापानी विधाओं की तरह ही ताँका में भी पंक्तियों की स्वतंत्रता निभाना अत्यंत आवश्यक है। हर पंक्ति अपने आप में स्वतंत्र हो परंतु कविता को एक ही भाव में समेटे अग्रसर भी करती रहे।)

बासुदेव अग्रवाल नमन
तिनसुकिया 

Monday, February 27, 2023

चौबोला छंद "मन की पीड़ा"

पीड़ हृदय की, किससे कहूँ।
रुदन अकेला, करके सहूँ।।
शून्य ताकता, घर में रहूँ।
खुद पर पछता, निश दिन दहूँ।।

यौवन में जब, अंधा हुआ।
मदिरा पी पी, खेला जुआ।।
राड़ मचा कर, सबसे रखी।
कभी न घर की, पीड़ा लखी।।

दारा सुत सब, न्यारे हुए।
कौन भाव अब, मेरे छुए।।
बड़ा अकेला, अनुभव करूँ।
पड़ा गेह में, आहें भरूँ।।

संस्कारों में, बढ कर पला।
परिपाटी में, बचपन ढला।।
कूसंगत में, कैसे बहा।
सोच सोच अब, जाऊँ दहा।।
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चौबोला छंद विधान -

चौबोला छंद 15 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है। यह तैथिक जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 पद होते हैं और छंद के दो दो या चारों पद सम तुकांत होने चाहिए। इन 15 मात्राओं की मात्रा बाँट:- अठकल, चौकल+1S (लघु गुरु वर्ण) है। यति 8 और 7 मात्राओं पर है। अठकल में 4 4 या 3 3 2 हो सकते हैं। चौकल में 22, 211, 112 या 1111 हो सकते हैं। 
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
08-06-22

Monday, February 20, 2023

32 मात्रिक छंद "वन्दना"

32 मात्रिक छंद 

"वन्दना"

इतनी ईश दया दिखला कर, सुप्रभात जीवन का ला दो।
अंधकारमय जीवन रातें, दूर गगन में प्रभु भटका दो।।
पथ अनेक मेंरे कष्टों के , जिनमें यह मन भटका रहता।
ज्ञान ज्योति के मैं अभाव में, तमस भरी रातों को सहता।।

मेरे प्रज्ञा-पथ में भारी, ये कुबुद्धि पाषाण पड़े हैं।
विकसित ज्ञान-सरित में सारे, अचल खड़े नगराज अड़े हैं।।
मेरे जीवन की सुख नींदें, मोह-नींद में बदल गयी हैं।
जीवन की वे सुखकर रातें, अंधकार में पिघल गयी हैं।।

मेरी वाणी वीणा का अब, बिखर गया हर तार तार है।
वीणा बिन इस गुंजित मन का, अवगूंठित हर भाव-सार है।।
स्वच्छ हृदय के भावों पर है, पसर गया कालिम सा अंबर।
सम्यक ज्ञान-उजास ढके ज्यों, खोटी नीयत हर आडंबर।।

परमेश्वर तेरे मन में तो, दया उदधि रहता लहराता।
अति विशाल इस हृदय-शिखर पर, करुणा का ध्वज है फहराता।।
मेरे हर कर्मों को प्रभु जी, समझो अपनी ही क्रीड़ाएँ।
मन के मेरे दुख कष्टों को, समझो अपनी ही पीड़ाएँ।।

इन नेत्रों के अश्रु बिंदु ही, अर्ध्य तिहारा पूजित पावन।
दुःख भरी ये लम्बी आहें, विमल स्तोत्र हैं मन के भावन।।
नींद रात्रि में जब लेता हूँ, चिर समाधि प्रभु वो है तेरी।
आधि व्याधि के कष्ट सहूँ तो, वो साकार साधना मेरी।।

टूटी फूटी जो वाणी है, मानस भाव व्यक्त करने को।
स्तुति प्रभु मेरी वही समझना, तेरा परम हृदय हरने को।।
इस जीवन की सभी क्रियाएँ, मैं विलीन सब कर दूँ तुझमें।
सकल क्रियाएँ मेरी तेरी, मुझमें तू है, मैं हूँ तुझमें।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
17-04-2016

Friday, February 10, 2023

सिंहावलोकन दोहा मुक्तक

दोहा छंद में दो मुक्तक 


(1)

लाज लसित लोचन हुये, बजे प्रीत के साज।
साज सजन के सज रहे, मग्न हुई मैं आज।
आज मिलन की चाह में, सुध-बुध भूला देह।
देह बाट पिय की लखे, भारी भर कर लाज।।

(2)

राजनीति दूषित हुई, नेता हैं बिन लाज।
लाज स्वार्थ में छिप गई, भ्रष्ट हुये सब आज।
आज देश में हर तरफ, बस कुर्सी की भूख।
भूख घिरी जनता इधर, कोसे यह जन-राज।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
25-05-19

Sunday, February 5, 2023

छंदा सागर (वृत्त-छंदाएँ)

                         पाठ - 07


छंदा सागर ग्रन्थ


"वृत्त-छंदाएँ"


द्वितीय पाठ में हमारा वर्ण, तृतीय पाठ में गुच्छक और चतुर्थ पाठ में विभिन्न संकेतकों से परिचय हो चुका है। अब सर्वप्रथम हम वृत्त छंदाओं की संरचना से छंदाओं के विस्तृत संसार में प्रवेश करने जा रहे हैं।

वैसे तो कुल 72 गुच्छक हैं जिनकी संरचना हम तृतीय पाठ में देख चुके हैं पर इस पाठ में 21 गुच्छक की वृत्त छंदाएँ दी हुई हैं। जिन गुच्छक के अंत में गुरु वर्ण है केवल उन्हीं गुच्छक की वृत्त छंदाएँ यहाँ पर हैं। केवल गुरु वर्णों से बने दो गुच्छक ईमग (2222) और मगण (222) के लिये गुरु-छंदा के नाम से अलग से पाठ संकलित किया गया है। इसके अतिरिक्त जिन गुच्छक में 2 से अधिक लघु एक साथ हैं उन गुच्छक की छंदाएँ भी इस पाठ में नहीं दी गई हैं।

4, 6, 8 आवृत्ति की छंदाओं की मध्य यति की छंदाएँ अलग से दी गई हैं।

इस पाठ में हर गुच्छक की सर्वप्रथम वाचिक स्वरूप की छंदा दी गई है, तत्पश्चात मात्रिक स्वरूप की तथा अंत में वर्णिक स्वरूप की छंदा दी गई है। कोष्टक में छंद का प्रचलित नाम है।सर्वप्रथम गुच्छक का संकेतक है, इसके बाद संख्यावाचक संकेतक फिर स्वरूप संकेतक। वाचिक का संकेतक या तो विलुप्त है अथवा 'क' या 'का' है। मात्रिक का संकेतक 'ण' वर्ण है तथा वर्णिक का संकेतक 'व' वर्ण है। 'ध' या 'धा' संकेतक आवृत्ति सहित गुच्छक का मध्य यति के साथ दोहरे रूप का सूचक है।

त्रिवर्णी (गण) की वृत्त छंदाएँ:- (किसी भी छंदा में कम से कम चार वर्ण होने आवश्यक हैं अतः गणों की एक आवृत्ति की छंदाएँ नहीं हैं।)

(1) 122 (यगण)

    (a) 122*2 = यादा, यादण, यादव (सोमराजी/शंखनारी/शंखनादी छंद)
122*2 + 1 = यादल, यदलण, यदलव
1221*2 = यंदा, यंदण, यंदव।
(गण संकेतक में अनुस्वार अंत में लघु की वृद्धि कर देता है। )

    (b) 122*3 = याबा, याबण, याबव (बृहत्य छंद)
122*3 + 1 = याबल, यबलण, यबलव
1221*3 = यंबा, यंबण, यंबव।

    (c) 122*4 = याचा, याचण, याचव (भुजंगप्रयात छंद)
122*4 + 1 = याचल, यचलण, यचलव
1221*4 = यंचा, यंचण, यंचव।

    (d) 122*2, 122*2 = यादध, यदधण, यदधव। (याचा से इसका अंतर समझें।)
122*2, 122*2 + 1 = यदधल, यादधलण, यादधलव
122*2 + 1, 122*2 + 1 = यदलध, यादलधण, यादलधव। ('ध' संकेतक 'यादल' को यति सहित द्विगुणित कर रहा है।) 
1221*2, 1221*2 = यंदध, यंदाधण, यंदाधव। 

    (e) 122*3, 122*3 = याबध, यबधण, यबधव (चन्द्रक्रीड़ा छंद)।
122*3, 122*3 + 1 = यबधल, याबधलण, याबधलव
122*3 + 1, 122*3 + 1 = यबलध, याबलधण, याबलधव।

    (f) 122*4, 122*4 = याचध, यचधण, यचधव (महाभुजंगप्रयात छंद)।
122*4, 122*4 + 1 = यचधल, याचधलण, याचधलव
122*4 + 1, 122*4 + 1 = यचलध, याचलधण, याचलधव।

   (g) 122*6 = याटव (महामोदकारी/क्रीड़ाचक्र छंद)
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(2) 212 (रगण)
    (a) 212*2 = रादा, रादण, रादव (विमोहा/विजोहा छंद)
212*2 + 1 = रादल, रदलण, रदलव।
2121*2 = रंदा, रंदण, रंदव (मल्लिका छंद)

    (b) 212*3 = राबा, राबण, राबव (महालक्ष्मी छंद)
212*3 + 1 = राबल, रबलण, रबलव।
2121*3 = रंबा, रंबण, रंबव।

    (c) 212*4 = राचा, राचण (कामिनीमोहन/ मदनावतार छंद), राचव (स्त्रग्विणी/लक्ष्मीधर छंद)
212*4 + 1 = राचल, रचलण, रचलव।
2121*4 = रंचा, रंचण, रंचव (ब्रह्मरूपक/चंचला छंद)

    (d) 212*2, 212*2 = रादध, रदधण, रदधव।
212*2, 212*2 + 1 = रदधल, रादधलण, रादधलव
212*2 + 1, 212*2 + 1 = रदलध, रादलधण, रादलधव। ('ध' संकेतक 'रादल' को यति सहित द्विगुणित कर रहा है।)
2121*2, 2121*2 = रंदध, रंदाधण, रंदाधव। 

    (e) 212*3, 212*3 = राबध, रबधण, रबधव (मंदार छंद)।
212*3, 212*3 + 1 = रबधल, राबधलण, राबधलव
212*3 + 1, 212*3 + 1 = रबलध, राबलधण, राबलधव।

    (f) 212*4, 212*4 = राचध, रचधण, रचधव।
212*4, 212*4 + 1 = रचधल, राचधलण, राचधलव
212*4 + 1, 212*4 + 1 = रचलध, राचलधण, राचलधव।

   (g) 212*5 = रापव (इंदीवर छंद)
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(3) 112 (सगण)
    (a) 112*2 = सादा, सादण, सादव (तिलका छंद)
112*2 + 1 = सादल, सदलण, सदलव।
1121*2 = 'संदव' केवल वर्णिक में।

    (b) 112*3 = साबा, साबण, साबव
112*3 + 1 = साबल, सबलण, सबलव।
1121*3 = 'संबव' केवल वर्णिक में।

    (c) 112*4 = साचा, साचण, साचव (तोटक छंद)
112*4 + 1 = साचल, सचलण, सचलव
1121*4 = 'संचव' केवल वर्णिक में।

    (d) 112*2, 112*2 = सादध, सदधण, सदधव
112*2, 112*2 + 1 = सदधल, सादधलण, सादधलव
112*2 + 1, 112*2 + 1= सदलध, सादलधण, सादलधव।

    (e) 112*3, 112*3 = साबध, सबधण, सबधव (विचित्रपद छंद)
112*3, 112*3 + 1 = सबधल, साबधलण, साबधलव
112*3 + 1, 112*3 + 1= सबलध, साबलधण, साबलधव।

    (f) 112*4, 112*4 = साचध, सचधण सचधव
112*4, 112*4 + 1 = सचधल, साचधलण, साचधलव
112*4 + 1, 112*4 + 1= सचलध, साचलधण, साचलधव।

     (g) 112*5 = सापव (भ्रमरावलि/नलिनी छंद)

(112*2 का वाचिक में उच्चारण के अनुसार 1121  12 रूप है।)
(112*3 का वाचिक मेंउच्चारण के अनुसार 1121  121  12 रूप है।)

ऐसे ही अन्य में समझें।
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चतुष वर्णी गणक (ईगक गणक) की वृत्त छंदाएँ:-

(4) 2212 (ईतग गणक)
    (a) 2212*1 = तीका, तीकण, तीकव (धरा छंद)
22121 = तींका, तींकण (मधुभार छंद), तींकव (छवि छंद)

    (b) 2212*2 = तीदा, तीदण (मधुमालती छंद)), तीदव
2212*2 + 1 = तीदल, तीदालण, तीदालव
22121*2 = तींदा, तींदण, तींदव

    (c) 2212*3 = तीबा, तीबण, तीबव
2212*3 + 1 = तीबल, तीबालण, तीबालव
22121*3 = तींबा, तींबण, तींबव

    (d) 2212*4 = तीचा, तीचण (हरिगीतिका छंद), तीचव
2212*4 + 1 = तीचल, तीचालण, तीचालव
22121*4 = तींचा, तींचण, तींचव

    (e) 2212*2, 2212*2 = तीदध, तीदाधण, तीदाधव।
2212*2, 2212*2 + 1 = तीदाधल, तीदधलण, तीदधलव
2212*2 + 1, 2212*2 + 1= तीदालध, तीदलधण, तीदलधव
22121*2, 22121*2 = तींदध, तींदाधण, तींदाधव। 
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(5) 2122 (ईरग गणक)
    (a) 2122*1 = रीका, रीकण, रीकव (रंगी छंद)
21221 = रींका, रींकण, रींकव

    (b) 2122*2 = रीदा, रीदण (मनोरम छंद), रीदव
2122*2 + 1 = रीदल, रीदालण, रीदालव
21221*2 = रींदा, रींदण, रींदव

    (c) 2122*3 = रीबा, रीबण, रीबव
2122*3 + 1 = रीबल, रीबालण, रीबालव
21221*3 = रींबा, रींबण, रींबव

    (d) 2122*4 = रीचा, रीचण (माधव मालती), रीचव
2122*4 + 1 = रीचल, रीचालण, रीचालव
21221*4 = रींचा, रींचण, रींचव

    (e) 2122*2, 2122*2 = रीदध, रीदाधण, रीदाधव।
2122*2, 2122*2 + 1 = रीदाधल, रीदधलण, रीदधलव
2122*2 + 1, 2122*2 + 1= रीदालध, रीदलधण, रीदलधव
21221*2, 21221*2 = रींदध, रींदाधण, रींदाधव। 
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(6) 2112 (ईभग गणक)
    (a) 2112*1 = भीका, भीकण, भीकव (कला छंद)
21121 = भींका, भींकण, भींकव

    (b) 2112*2 = भीदा, भीदण, भीदव (माणवक छंद)
2112*2 + 1 = भीदल, भीदालण, भीदालव
21121*2 = भींदा, भींदण, भींदव

    (c) 2112*3 = भीबा, भीबण, भीबव
2112*3 + 1 = भीबल, भीबालण, भीबालव
21121*3 = भींबा, भींबण, भींबव

    (d) 2112*4 = भीचा, भीचण, भीचव (सारस छंद)
2112*4 + 1 = भीचल, भीचालण, भीचालव
21121*4 = भींचा, भींचण, भींचव

    (e) 2112*2, 2112*2 = भीदध, भीदाधण (सारस छंद), भीदाधव।
2112*2, 2112*2 + 1 = भीदाधल, भीदधलण, भीदधलव
2112*2 + 1, 2112*2 + 1= भीदालध, भीदलधण, भीदलधव

(2112*4 का उच्चारण के अनुसार 21  1221*3  12 रूप है। अन्य में भी इसी प्रकार समझें।)
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(7) 1222 (ईयग गणक)
    (a) 1222*1 = यीका, यीकण, यीकव (क्रीड़ा छंद)
12221 = यींका, यींकण, यींकव (मधुभार छंद)

    (b) 1222*2 = यीदा, यीदण (विजात छंद), यीदव
1222*2 + 1 = यीदल, यीदालण, यीदालव
12221*2 = यींदा, यींदण, यींदव

    (c) 1222*3 = यीबा, यीबण (सिन्धु छंद), यीबव
1222*3 + 1 = यीबल, यीबालण, यीबालव
12221*3 = यींबा, यींबण, यींबव

    (d) 1222*4 = यीचा, यीचण (विधाता छंद), यीचव
1222*4 + 1 = यीचल, यीचालण, यीचालव
12221*4 = यींचा, यींचण, यींचव

    (e) 1222*2, 1222*2 = यीदध, यीदाधण, यीदाधव।
1222*2, 1222*2 + 1 = यीदाधल, यीदधलण, यीदधलव
1222*2 + 1, 1222*2 + 1= यीदालध, यीदलधण, यीदलधव
12221*2, 12221*2 = यींदध, यींदाधण, यींदाधव। 
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(8) 1212 (ईजग गणक)
    (a) 1212*1 = जीका, जीकण, जीकव (सुधी छंद)
12121 = जींका, जींकण, जींकव

    (b) 1212*2 = जीदा, जीदण, जीदव (प्रमाणिका छंद)
1212*2 + 1 = जीदल, जीदालण, जीदालव (भालचंद्र छंद)
12121*2 = जींदा, जींदण, जींदव

    (c) 1212*3 = जीबा, जीबण, जीबव
1212*3 + 1 = जीबल, जीबालण, जीबालव
12121*3 = जींबा, जींबण, जींबव

    (d) 1212*4 = जीचा, जीचण, जीचव
1212*4 + 1 = जीचल, जीचालण, जीचालव
12121*4 = जींचा, जींचण, जींचव

    (e) 1212*2, 1212*2 = जीदध, जीदाधण, जीदाधव (पंचचामर/नराच/नागराज छंद)
1212*2, 1212*2 + 1 = जीदाधल, जीदधलण, जीदधलव
1212*2 + 1, 1212*2 + 1= जीदालध, जीदलधण, जीदलधव

    (f) 1212*3, 1212*3 = जीबध, जीबाधण, जीबाधव।
1212*3, 1212*3 + 1 = जीबाधल, जीबधलण, जीबधलव
1212*3 + 1, 1212*3 + 1= जीबालध, जीबलधण, जीबलधव

    (g) 1212*4, 1212*4 = जीचध, जीचाधण, जीचाधव
1212*8 = जीठव (अनंगशेखर छंद)
1212*4, 1212*4 + 1 = जीचाधल, जीचधलण, जीचधलव
1212*4 + 1, 1212*4 + 1= जीचालध, जीचलधण, जीचलधव
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(9) 1122 (ईसग गणक)
    (a) 1122*1 = सीका, सीकण, सीकव (देवी/रमा छंद)
11221 = सींका, सींकण, सींकव

    (b) 1122*2 = सीदा, सीदण, सीदव (वितान छंद)
1122*2 + 1 = सीदल, सीदालण, सीदालव
11221*2 = सींदव (केवल वर्णिक में)

    (c) 1122*3 = सीबा, सीबण, सीबव
1122*3 + 1 = सीबल, सीबालण, सीबालव
11221*3 = सींबव (केवल वर्णिक में)

    (d) 1122*4 = सीचा, सीचण, सीचव
1122*4 + 1 = सीचल, सीचालण, सीचालव
11221*4 = सींचव (केवल वर्णिक में)

    (e) 1122*2, 1122*2 = सीदध, सीदाधण, सीदाधव।
1122*2, 1122*2 + 1 = सीदाधल, सीदधलण, सीदधलव
1122*2 + 1, 1122*2 + 1= सीदालध, सीदलधण, सीदलधव।

(सीचा का वाचिक में उच्चारण के अनुसार 11221  1221*2  122 रूप बनेगा। इसी प्रकार अन्य छंदाओं में भी समझें)
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पंचवर्णी गणक (एगागक) की वृत्त छंदाएँ:-

(10) 22122 (एतागग गणक)
    (a) 22122*1 = तेका, तेकण, तेकव (हारी/हारीत छंद)
221221 = तैंका, तैंकण, तैंकव

    (b) 22122*2 = तेदा, तेदण, तेदव
22122*2 + 1 = तेदल, तेदालण, तेदालव
221221*2 = तैंदा, तैंदण, तैंदव

    (c) 22122*3 = तेबा, तेबण, तेबव
22122*3 + 1 = तेबल, तेबालण, तेबालव
221221*3 = तैंबा, तैंबण, तैंबव

    (d) 22122*4 = तेचा, तेचण, तेचव
22122*4 + 1 = तेचल, तेचालण, तेचालव
221221*4 = तैंचा, तैंचण, तैंचव

    (e) 22122*2, 22122*2 = तेदध, तेदाधण, तेदाधव
22122*2, 22122*2 + 1 = तेदाधल, तेदधलण, तेदधलव
22122*2 + 1 , 22122*2 + 1 = तेदालध, तेदलधण, तेदलधव
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(11) 21222 (एरागग गणक)
    (a) 21222*1 = रेका, रेकण, रेकव
212221 = रैंका, रैंकण, रैंकव

    (b) 21222*2 = रेदा, रेदण, रेदव
21222*2 + 1 = रेदल, रेदालण, रेदालव
212221*2 = रैंदा, रैंदण, रैंदव

    (c) 21222*3 = रेबा, रेबण, रेबव
21222*3 + 1 = रेबल, रेबालण, रेबालव
212221*3 = रैंबा, रैंबण, रैंबव

    (d) 21222*4 = रेचा, रेचण, रेचव
21222*4 + 1 = रेचल, रेचालण, रेचालव
212221*4 = रैंचा, रैंचण, रैंचव

    (e) 21222*2, 21222*2 = रेदध, रेदाधण, रेदाधव
21222*2, 21222*2 + 1 = रेदाधल, रेदधलण, रेदधलव
21222*2 + 1 , 21222*2 + 1 = रेदालध, रेदलधण, रेदलधव
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(12) 12222 (एयागग गणक)
    (a) 12222*1 = येका, येकण, येकव
122221 = यैंका, यैंकण, यैंकव

    (b) 12222*2 = येदा, येदण, येदव
12222*2 + 1 = येदल, येदालण, येदालव
122221*2 = यैंदा, यैंदण, यैंदव

    (c) 12222*3 = येबा, येबण, येबव
12222*3 + 1 = येबल, येबालण, येबालव
122221*3 = यैंबा, यैंबण, यैंबव

    (d) 12222*4 = येचा, येचण, येचव
12222*4 + 1 = येचल, येचालण, येचालव
122221*4 = यैंचा, यैंचण, यैंचव

    (e) 12222*2, 12222*2 = येदध, येदाधण, येदाधव
12222*2, 12222*2 + 1 = येदाधल, येदधलण, येदधलव
12222*2 + 1 , 12222*2 + 1 = येदालध, येदलधण, येदलधव
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(13) 21122 (एभागग गणक)
    (a) 21122*1 = भेका, भेकण, भेकव (हंस/पंक्ति छंद)
211221 = भैंका, भैंकण, भैंकव

    (b) 21122*2 = भेदा, भेदण, भेदव (चम्पकमाला/रुक्मवती छंद)
21122*2 + 1 = भेदल, भेदालण, भेदालव
211221*2 = भैंदा, भैंदण, भैंदव

    (c) 21122*3 = भेबा, भेबण, भेबव
21122*3 + 1 = भेबल, भेबालण, भेबालव
211221*3 = भैंबा, भैंबण, भैंबव

    (d) 21122*4 = भेचा, भेचण, भेचव
21122*4 + 1 = भेचल, भेचालण, भेचालव
211221*4 = भैंचा, भैंचण, भैंचव

    (e) 21122*2, 21122*2 = भेदध, भेदाधण, भेदाधव
21122*2, 21122*2 + 1 = भेदाधल, भेदधलण, भेदधलव
21122*2 + 1, 21122*2 + 1= भेदालध, भेदलधण, भेदलधव
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(14) 12122 (एजागग गणक)
    (a) 12122*1 = जेका, जेकण, जेकव (यशोदा/कण्ठी छंद)
121221 = जैंका, जैंकण, जैंकव

    (b) 12122*2 = जेदा, जेदण, जेदव
12122*2 + 1 = जेदल, जेदालण, जेदालव
121221*2 = जैंदा, जैंदण, जैंदव

    (c) 12122*3 = जेबा, जेबण, जेबव
12122*3 + 1 = जेबल, जेबालण, जेबालव
121221*3 = जैंबा, जैंबण, जैंबव

    (d) 12122*4 = जेचा, जेचण, जेचव
12122*4 + 1 = जेचल, जेचालण, जेचालव
121221*4 = जैंचा, जैंचण, जैंचव

    (e) 12122*2, 12122*2 = जेदध, जेदाधण, जेदाधव
12122*2, 12122*2 + 1 = जेदाधल, जेदधलण, जेदधलव
12122*2 + 1, 12122*2 + 1= जेदालध, जेदलधण, जेदलधव
****

(15) 11222 (एसागग गणक)
    (a) 11222*1 = सेका, सेकण, सेकव
112221 = सैंका, सैंकण, सैंकव

    (b) 11222*2 = सेदा, सेदण, सेदव
11222*2 + 1 = सेदल, सेदालण, सेदालव
112221*2 = सैंदव (केवल वर्णिक में)

    (c) 11222*3 = सेबा, सेबण, सेबव
11222*3 + 1 = सेबल, सेबालण, सेबालव
112221*3 = सैंबव (केवल वर्णिक में)

    (d) 11222*4 = सेचा, सेचण, सेचव
11222*4 + 1 = सेचल, सेचालण, सेचालव
112221*4 = सैंचव (केवल वर्णिक में)

    (e) 11222*2, 11222*2 = सेदध, सेदाधण, सेदाधव
11222*2, 11222*2 + 1 = सेदाधल, सेदधलण, सेदधलव
11222*2 + 1 , 11222*2 + 1 = सेदालध, सेदलधण, सेदलधव
****

पंचवर्णी गणक (उलगक) की वृत्त छंदाएँ:-

(16) 22212 (ऊमालग गणक)
    (a) 22212*1 = मूका, मूकण, मूकव
222121 = मूंका, मूंकण, मूंकव

    (b) 22212*2 = मूदा, मूदण, मूदव
22212*2 + 1 = मूदल, मूदालण, मूदालव
222121*2 = मूंदा, मूंदण, मूंदव

    (c) 22212*3 = मूबा, मूबण, मूबव
22212*3 + 1 = मूबल, मूबालण, मूबालव
222121*3 = मूंबा, मूंबण, मूंबव

    (d) 22212*4 = मूचा, मूचण, मूचव
22212*4 + 1 = मूचल, मूचालण, मूचालव
222121*4 = मूंचा, मूंचण, मूंचव

    (e) 22212*2, 22212*2 = मूदध, मूदाधण, मूदाधव
22212*2, 22212*2 + 1 = मूदाधल, मूदधलण, मूदधलव
22212*2 + 1, 22212*2 + 1= मूदालध, मूदलधण, मूदलधव
****

(17) 22112 (ऊतालग गणक)
    (a) 22112*1 = तूका, तूकण, तूकव (हारित छंद)
221121 = तूंका, तूंकण, तूंकव

    (b) 22112*2 = तूदा, तूदण, तूदव (वामा छंद)
22112*2 + 1 = तूदल, तूदालण, तूदालव
221121*2 = तूंदा, तूंदण, तूंदव

    (c) 22112*3 = तूबा, तूबण, तूबव
22112*3 + 1 = तूबल, तूबालण, तूबालव
221121*3 = तूंबा, तूंबण, तूंबव

    (d) 22112*4 = तूचा, तूचण, तूचव
22112*4 + 1 = तूचल, तूचालण, तूचालव
221121*4 = तूंचा, तूंचण, तूंचव

    (e) 22112*2, 22112*2 = तूदध, तूदाधण, तूदाधव
22112*2, 22112*2 + 1 = तूदाधल, तूदधलण, तूदधलव
22112*2 + 1, 22112*2 + 1= तूदालध, तूदलधण, तूदलधव
****

(18) 21212 (ऊरालग गणक)
    (a) 21212*1 = रूका, रूकण, रूकव (तारा छंद)
212121 = रूंका, रूंकण, रूंकव

    (b) 21212*2 = रूदा, रूदण, रूदव (कामदा छंद)
21212*2 + 1 = रूदल, रूदालण, रूदालव
212121*2 = रूंदा, रूंदण, रूंदव

    (c) 21212*3 = रूबा, रूबण, रूबव
21212*3 + 1 = रूबल, रूबालण, रूबालव
212121*3 = रूंबा, रूंबण, रूंबव

    (d) 21212*4 = रूचा, रूचण, रूचव
21212*4 + 1 = रूचल, रूचालण, रूचालव
212121*4 = रूंचा, रूंचण, रूंचव

    (e) 21212*2, 21212*2 = रूदध, रूदाधण, रूदाधव
21212*2, 21212*2 + 1 = रूदाधल, रूदधलण, रूदधलव
21212*2 + 1, 21212*2 + 1= रूदालध, रूदलधण, रूदलधव
****

(19) 12212 (ऊयालग गणक)
    (a) 12212*1 = यूका, यूकण, यूकव
122121 = यूंका, यूंकण, यूंकव

    (b) 12212*2 = यूदा, यूदण, यूदव
12212*2 + 1 = यूदल, यूदालण, यूदालव
122121*2 = यूंदा, यूंदण, यूंदव

    (c) 12212*3 = यूबा, यूबण, यूबव
12212*3 + 1 = यूबल, यूबालण, यूबालव
122121*3 = यूंबा, यूंबण, यूंबव

    (d) 12212*4 = यूचा, यूचण, यूचव
12212*4 + 1 = यूचल, यूचालण, यूचालव
122121*4 = यूंचा, यूंचण, यूंचव

    (e) 12212*2, 12212*2 = यूदध, यूदाधण, यूदाधव
12212*2, 12212*2 + 1 = यूदाधल, यूदधलण, यूदधलव
12212*2 + 1, 12212*2 + 1= यूदालध, यूदलधण, यूदलधव
****

(20) 12112 (ऊजालग गणक)
    (a) 12112*1 = जूका, जूकण, जूकव
121121 = जूंका, जूंकण, जूंकव

    (b) 12112*2 = जूदा, जूदण, जूदव
12112*2 + 1 = जूदल, जूदालण, जूदालव
121121*2 = जूंदा, जूंदण, जूंदव

    (c) 12112*3 = जूबा, जूबण, जूबव
12112*3 + 1 = जूबल, जूबालण, जूबालव
121121*3 = जूंबा, जूंबण, जूंबव

    (d) 12112*4 = जूचा, जूचण, जूचव
12112*4 + 1 = जूचल, जूचालण, जूचालव
121121*4 = जूंचा, जूंचण, जूंचव

    (e) 12112*2, 12112*2 = जूदध, जूदाधण, जूदाधव
12112*2, 12112*2 + 1 = जूदाधल, जूदधलण, जूदधलव
12112*2 + 1, 12112*2 + 1= जूदालध, जूदलधण, जूदलधव
121121*2, 121121*2 = जूंदध, जूंदाधण, जूंदाधव
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(21) 11212 (ऊसालग गणक)
    (a) 11212*1 = सूका, सूकण, सूकव (रति छंद)
112121 = सूंका, सूंकण, सूंकव

    (b) 11212*2 = सूदा, सूदण, सूदव (संयुत/संयुक्ता छंद)
11212*2 + 1 = सूदल, सूदालण, सूदालव
112121*2 = सूंदव (केवल वर्णिक में)

    (c) 11212*3 = सूबा, सूबण, सूबव (मनहंस/रणहंस छंद)
11212*3 + 1 = सूबल, सूबालण, सूबालव
112121*3 = सूंबव (केवल वर्णिक में)

    (d) 11212*4 = सूचा, सूचण, सूचव (सुन्दरगीतिका छंद)
11212*4 + 1 = सूचल, सूचालण, सूचालव
112121*4 = सूंचव (केवल वर्णिक में)

    (e) 11212*2, 11212*2 = सूदध, सूदाधण, सूदाधव (हरिगीतिका छंद)
11212*2, 11212*2 + 1 = सूदाधल, सूदधलण, सूदधलव
11212*2 + 1, 11212*2 + 1= सूदालध, सूदलधण, सूदलधव
    
    (f) 11212*4, 11212*4 = सूचध, सूचाधण, सूचाधव।
11212*4, 11212*4 + 1 = सूचाधल, सूचधलण, सूचधलव
11212*4 + 1, 11212*4 + 1= सूचालध, सूचलधण, सूचलधव
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

Thursday, February 2, 2023

हाइकु (सैनिक)

हाइकु विधा - प्रति पंक्ति 5 - 7 - 5 वर्ण।

फौजी की शान
देश की आन बान
लुटा के जान।
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सैनिक भाई
मरने पे बड़ाई
वैसे तंगाई।
**

आजादी पर्व
देश मुदित सर्व
माथे पे गर्व।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-08-18