बह्र:- 221 2121 1221 212
पाएँ वफ़ा के बदले जफ़ाएँ तो क्या करें,
हर बार उनसे चोट ही खाएँ तो क्या करें।
हम ख्वाब भी न दिल में सजाएँ तो क्या करें,
उम्मीद जीने की न जगाएँ तो क्या करें।
बन जाते उनके जख़्म की मरहम, कोई दवा,
हर जख़्म-ओ-दर्द जब वे छिपाएँ तो क्या करें।
महफ़िल में अज़नबी से वे जब आये सामने,
अब मुस्कुराके भूल न जाएँ तो क्या करें।
चाहा था उनकी याद को दिल से मिटा दें हम,
रातों की नींद पर वे चुराएँ तो क्या करें।
लाखों बलाएँ सर पे हमारे हैं या ख़ुदा,
कुछ भी असर न करतीं दुआएँ तो क्या करें।
हम अम्न और चैन को करते सदा 'नमन',
पर बाज ही पड़ौसी न आएँ तो क्या करें।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-02-18
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