केवट की ये कामना, हरि-पद करूं पखार।
बोला धुलवाएं चरण, फिर उतरो प्रभु पार।।
फिर उतरो प्रभु पार, काठ की नौका मेरी।
बनी अगर ये नार, बजेगी मेरी भेरी।।
हँस धुलवाते पैर, राम सिय गंगा के तट।
भरे अश्रु की धार, कठौते में ही केवट।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
05-04-2020
बोला धुलवाएं चरण, फिर उतरो प्रभु पार।।
फिर उतरो प्रभु पार, काठ की नौका मेरी।
बनी अगर ये नार, बजेगी मेरी भेरी।।
हँस धुलवाते पैर, राम सिय गंगा के तट।
भरे अश्रु की धार, कठौते में ही केवट।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
05-04-2020
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