बह्र:- 212*4
उनके फिर से बहाने, तमाशे शुरू,
झूठे नखरे औ' आँसू बहाने शुरू।
हो गये खेल उल्फ़त के सारे शुरू,
चैन जाने लगा दर्द आने शुरू।
जब सुहानी महब्बत आ घर में बसी,
हो गये दिखने दिन में ही तारे शुरू।
जिनके चहरे में आता नज़र था क़मर,
अब तो उनकी कमर से हो ताने शुरू।
क्या चुनाव_आ गए, रहनुमा दिख रहे,
हर जगह उनके मज़मे औ' वादे शुरू।
इंतिहा क्या तरक्की की समझें इसे,
ख़त्म रिश्ते हुए औ' दिखावे शुरू।
फँस के धाराओं में बंद जो थे 'नमन',
डल की धाराओं में वे शिकारे शुरू।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
30-09-19
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