Monday, May 18, 2020

गीत (मैं भर के आहें तकूँ ये राहे)

(तर्ज--न जाओ सैंया)
12122 अरकान पर आधारित।

मैं भर के आहें तकूँ ये राहें,
सजन तु आजा सता न इतना, सता न इतना।
सिंगार सोलह मैं कर के बैठी,
बिना तिहारे क्या काम इनका, क्या काम इनका।।

तु ही है मंदिर तु मेरी मूरत,
बसी है मन में ये एक सूरत,
सजा के पूजा का थाल बैठी,
मैं घर की चौखट पे, दर्श अब दे, दर्श अब दे।

तेरी अगर जिद तु घर न आये,
यूँ रात भर नित मुझे सताये,
मेरी भी जिद है पड़ी रहूँगी,
यहीं पे माला मैं तेरी जपती, तेरी जपती।

किसी के ग़म का असर न तुझ पर,
पराई गलियों के काटे चक्कर,
ये घर का प्याला पड़ा उपेक्षित,
लगा के होठों से तृप्त कर दे, तृप्त कर दे।

मैं भर के आहें तकूँ ये राहें,
सजन तु आजा सता न इतना, सता न इतना।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
27-04-18

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