बह्र:- 2122 1212 22
दिल में कैसी ये बे-क़रारी है,
शायद_उन की ही इंतिज़ारी है।
इश्क़ में जो मज़ा वो और कहाँ,
इस नशे की अजब खुमारी है।
आज भर पेट, कल तो फिर फाका,
हमने वो ज़िंदगी गुज़ारी है।
दौर आतंक, लूट का ऐसा,
साँस लेना भी इसमें भारी है।
जिससे मतलब उसी से बस नाता,
आज की ये ही होशियारी है।
अब तो रहबर ही बन गये रहजन,
डर हुकूमत का सब पे तारी है।
उस नई सुब्ह की है आस 'नमन',
जिसमें दुनिया ही ये हमारी है।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
2-07-19
दिल में कैसी ये बे-क़रारी है,
शायद_उन की ही इंतिज़ारी है।
इश्क़ में जो मज़ा वो और कहाँ,
इस नशे की अजब खुमारी है।
आज भर पेट, कल तो फिर फाका,
हमने वो ज़िंदगी गुज़ारी है।
दौर आतंक, लूट का ऐसा,
साँस लेना भी इसमें भारी है।
जिससे मतलब उसी से बस नाता,
आज की ये ही होशियारी है।
अब तो रहबर ही बन गये रहजन,
डर हुकूमत का सब पे तारी है।
उस नई सुब्ह की है आस 'नमन',
जिसमें दुनिया ही ये हमारी है।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
2-07-19
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