Monday, October 5, 2020

ग़ज़ल (परंपराएं निभा रहे हैं)

 बह्र:- 12122*2

परंपराएं निभा रहे हैं।
खुशी से जीवन बिता रहे हैं।

रिवाज, उत्सव हमारे न्यारे,
उमंग से वे मना रहे हैं।

अनेक रंगों के पुष्प से खिल,
वतन का उपवन सजा रहे हैं।

हृदय में सौहार्द्र रख के सबसे,
हो मग्न कोयल से गा रहे हैं।

बताते औकात उन को अपनी,
हमें जो आँखें दिखा रहे हैं।

जो देख हमको जलें, उन्हें तो,
जला के छाई बना रहे हैं।

जो खा के लातों को समझे बातें,
तो कस के उन को जमा रहे हैं।

जगत को संदेश शान्ति का हम,
सदा से देते ही आ रहे हैं।

'नमन' हमारा स्वभाव ऐसा,
गले से रिपु भी लगा रहे हैं।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
06-09-20

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