Saturday, October 10, 2020

कुंडल छंद "ताँडव नृत्य"

नर्तत त्रिपुरारि नाथ, रौद्र रूप धारे।

डगमग कैलाश आज, काँप रहे सारे।।

बाघम्बर को लपेट, प्रलय-नेत्र खोले।

डमरू का कर निनाद, शिव शंकर डोले।।


लपटों सी लपक रहीं, ज्वाल सम जटाएँ।

वक्र व्याल कंठ हार, जीभ लपलपाएँ।।

ठाडे हैं हाथ जोड़, कार्तिकेय नंदी।

काँपे गौरा गणेश, गण सब ज्यों बंदी।।


दिग्गज चिघ्घाड़ रहें, सागर उफनाये।

नदियाँ सब मंद पड़ीं, पर्वत थर्राये।।

चंद्र भानु क्षीण हुये, प्रखर प्रभा छोड़े।

उच्छृंखल प्रकृति हुई, मर्यादा तोड़े।।


सुर मुनि सब हाथ जोड़, शीश को झुकाएँ।

शिव शिव वे बोल रहें, मधुर स्तोत्र गाएँ।।

इन सब से हो उदास, नाचत हैं भोले।

वर्णन यह 'नमन' करे, हृदय चक्षु खोले।।


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कुंडल छंद *विधान*


22 मात्रा का सम मात्रिक छंद। 12,10 यति। अंत में दो गुरु आवश्यक; यति से पहले त्रिकल आवश्यक।मात्रा बाँट :- 6+3+3, 6+SS

चार चरण, दो दो चरण समतुकांत या चारों चरण समतुकांत।

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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

तिनसुकिया

27-08-20

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