कोरोनासुर
विपदा बन कर
टूटा भू पर।
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यह कोरोना
सकल जगत का
अक्ष भिगोना।
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कोरोना पर
मुख को ढक कर
आओ बाहर।
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कोरोना यह
जगत रहा सह
कैदी सा रह।
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कोरोना अब
निगल रहा सब
जायेगा कब?
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बासुदेव अग्रवाल नमन
तिनसुकिया
14-08-20
इस ब्लॉग को “नयेकवि” जैसा सार्थक नाम दे कर निर्मित करने का प्रमुख उद्देश्य नये कवियों की रचनाओं को एक सशक्त मंच उपलब्ध कराना है जहाँ उन रचनाओं की उचित समीक्षा हो सके, साथ में सही मार्ग दर्शन हो सके और प्रोत्साहन मिल सके। यह “नयेकवि” ब्लॉग उन सभी हिन्दी भाषा के नवोदित कवियों को समर्पित है जो हिन्दी को उच्चतम शिखर पर पहुँचाने के लिये जी जान से लगे हुये हैं जिसकी वह पूर्ण अधिकारिणी है। आप सभी का इस नये ब्लॉग “नयेकवि” में हृदय की गहराइयों से स्वागत है।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२४-१०-२०२०) को 'स्नेह-रूपी जल' (चर्चा अंक- ३८६४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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अनीता सैनी
बहुत सुंदर सार्थक हाइकु।
ReplyDelete
ReplyDeletevery nice and effort