बह्र:- 2122 1212 22
प्यास दिल की न यूँ बढ़ाओ तुम,
जान ले लो न पर सताओ तुम।
पास आ के जरा सा बैठो तो,
फिर न चाहे गलेे लगाओ तुम।
चोट खाई बहुत जमाने से,
कम से कम आँख मत चुराओ तुम।
इल्तिज़ा आख़िरी ये जानेमन,
अब तो उजड़ा चमन बसाओ तुम।
खुद की नज़रों से खुद ही गिर कर के,
आग नफ़रत की मत लगाओ तुम,
बीच सड़कों के क़त्ल, शील लुटे,
देख कर सब ये तिलमिलाओ तुम।
ख़ारों के बीच रह के भी ए 'नमन'
खुद भी हँस औरों को हँसाओ तुम।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
12-02-2017
वाह।
ReplyDeleteआपका आभार
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपका आभार
Deleteआपका आभार
ReplyDeleteबढ़िया, वाह !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार।
Deleteबहुत ही खूबसूरत और दिल को छूने वाली गजल👌👌👌😍😍
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार।
Deleteयथार्थ पर प्रहार सटीक सृजन।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार।
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